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________________ वारह चक्रवर्ती २९९ "वीरा मारा गज थकी ऊतरो गज चढयां केवल न होसी रे॥ वन्धव गज थकी ऊतरो, ब्राह्मी सुन्दरी इम भाखे रे" भरनी बहनों के उपालम्भपूर्ण शब्द सुनकर बाहुबली चौक पड़े। मन ही मन कहने लगे-"क्या मैं सचमुच हाथी पर बैठा हूँ। हाथी घोड़े, राज्य, परिजन आदि सब को छोड़कर ही मने दीक्षा ली है । फिर हाथी की सवारी कैसी ? हाँ समझ में भाया । मैं अहंकार रूपी हाथी पर बैठा हूँ। मेरी बहनें ठीक कह रही हैं। मैं क्तिने भ्रम में था । छोटे और बड़े की कल्पना तो सांसारिक जीवों में है। आध्यात्मिक जगत में वही बड़ा है जिसने आत्मा का पूर्ण विकास कर लिया है । मेरी भात्मा मे अहंकार आदि अनेक दोष हैं और मेरे अनुज उनसे मुक्त हैं. अतः मुझे उन्हें नमस्कार करना ही चाहिये। यह सोच बाहुवली ने भगवान ऋषभदेव के पस जाने के लिये एक पैर भागे रखा । इतने में उनके चार घनघाती कर्म नष्ट हो गये । बाहुवली केवली हो गये। देवों ने पुष्पवृष्टि की। चारों और जय जयकार होने लगा । दोनों बहने भगवान के पास लौट आई। बाहुवली देवली परिषद में जा विराजे । अन्त में उन्होंने मोक्ष प्राप्त किया । भरत चक्रवर्ती ने अपने ९९ भाइयों के राज्य को भी अपने आधीन कर लिया । भरत चक्रवर्ती के चौदहरत्न, नवनिधान, बत्तीस हजार मुकुटवन्ध राजा, ८४ लाख घोड़े, ८४ लाख रथ, ८४ लाख हाथी, ९६ करोड़ पैदल सैन्य, वत्तीस हजार देश, ४८ हजार पट्टन, ३२ हजार बड़े नगर, ९९ हजार द्रोण, १६ हजार यक्ष, ६४ हजार अन्तःपुर थे। इस प्रकार विशाल वैभव का उपभोग करते हुए भरत चक्रवर्ती ने ६ लाख पूर्व व्यतीत किये।
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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