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________________ २५० आगम के अनमोल रत्न ३९ वाँ चातुर्मास चातुर्मास आपने नालन्दा में व्यतीत किया । ४०वाँ चातुर्मास चातुर्मास समाप्त कर भगवान ने विदेह की ओर विहार किया और आप मिथिला पधारे । यहाँ के राजा जितशत्रु ने आपका वड़ा आदर किया । ४०वाँ वर्षावास आपने मिथिला में किया। . ४१वाँ चातुर्मास मिथिला से विहार कर आप राजगृह पधारे। इस वर्ष में अग्निभूति और वायुभूति नामक गणधरों ने अनशन कर निर्वाण प्राप्त किया। इस वर्ष का चातुर्मास भगवान ने राजगृह में किया। ४२वाँ चातुर्मास __ भगवान महावीर के जीवन का यह अन्तिम वर्ष था। इस वर्ष का वर्षाकाल पावा में व्यतीत करने का निर्णय करके आप हस्तिपाल राजा की रज्जुक सभा में पधारे और वहीं चातुर्मास की स्थिरता की। इस वर्ष के चातुर्मास में आपने अनेक भव्यों को उद्बोधित किया राजा पुण्यपाल आदि ने आपसे श्रामण्य ग्रहण किया। एक एक करके वर्षाकाल के तीन महिने बीत गये और चौथा महिना लगभग आधा वीतने आया। कार्तिक अमावस्या का प्रातःकाल हो चुका था। उस समय राजा हस्तिपाल की रज्जुक सभा-भवन में भगवान महावीर के अन्तिम समवशरण की रचना हुई। उसी दिन भगवान ने सोचा-आज मै मुक्त होनेवाला हूँ और गौतम का मुझपर बहुत अधिक स्नेह है। यह स्नेह बन्धन ही इसे केवली होने से रोक रहा है इसलिये इसके स्नेह बन्धन को नष्ट करने का उपाय करना चाहिए। यह सोचकर भगवान ने गौतम स्वामी को वुलाया और कहा-गौतम ! पास के गाँव में देवशर्मा ब्राह्मण रहता है वह तुम्हारे उपदेश से प्रतिबोध पायगा इसलिये तुम उसे उपदेश देने जाओ। भगवान की आज्ञा प्राप्त कर गौतम, देवशर्मा ब्राह्मग को उपदेश देने चले गये।
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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