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________________ ૨છo आगम के अनमोल रत्न इनदिनों विदेह की राजधानी वैशाली रणभूमि बनी हुई थी। एक ओर मगधपति कोणिक और उसके काल आदि सौतेले भाई अपनी अपनी सेना के साथ लड़ रहे थे और दूसरी वैशालीपति चेटकराजा और काशी, कोशल के अठारह गणराजा अपनी अपनी सेना के साथ कोणिक का सामना कर रहे थे। इस युद्ध में कोणिक विजयी हुआ । काल आदि दस कुमार चेटक के हाथों मारे गये । भगवान पुनः चम्पा पधारे। अपने पुत्र के मृत्यु के समाचारों से काली आदि रानियों ने भगवान से प्रव्रज्या ग्रहण की। कुछ समय तक चम्पा में विराज कर भगवान पुनः मिथिला पधारे। आपने इस वर्ष का चातुर्मास मिथिला में ही विताया। चातुर्मास समाप्ति के बाद भगवान श्रावस्ती पधारे । यहाँ कोणिक के भाई वेहास (हल्ल) वेहल्ल जिनके निमित्त वैशाली में युद्ध हो रहा था किसी तरह भगवान के पास पहुँचे और दीक्षा लेकर भगवान के शिष्य बन गये । ___भगवान विचरते हुए श्रावस्ती पहुँचे और श्रावस्ती के ईशान कोण स्थित कोष्ठक में ठहरे । गोशालक प्रकरण उनदिनों मंखलिपुत्त गोशालक भी वहीं था । भगवान महावीर से अलग होकर वह प्रायः श्रावस्तो के आस पास ही घूमता था । तेजोलेश्या की प्राप्ति और निमित्त शास्त्रों का अभ्यास गोशालक ने श्रावस्ती में ही किया था । श्रावस्ती में भयपुल नामक गाथापति और हालाहला कुम्हारिण गोशालक के परम भक्त थे । प्रायः गोशालक हालाहला कुम्हारिण की भाण्डशाला में ही ठहरता था । । गोशालक भगवान महावीर के छद्मस्थ काल में उनके साथ छ वर्ष तक रहा था. ।, भगवान महावीर से तेजोलेश्या प्राप्ति । का उपाय पाकर वह उनसे अलग हो गया। हालाहला कुम्हारिणं की भाण्डशाला में उसने तपश्चर्या कर तेजोलन्धि प्राप्त करली थी । कालान्तर
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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