SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 267
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तीर्थड्वर चरित्र २३३ ब्राह्मणी थी। ऋषभदत्त और देवानन्दा ब्राह्मण होते हुए भी जीव, अजीव, पुण्य-पाप भादि तत्त्वों के ज्ञाता श्रमणोपासक थे । वहुसाल में भगवान का आगमन सुनकर ऋषभदत्त बड़ा प्रसन्न हुआ। वह देवानन्दा को साथ में ले, धार्मिक रथ पर आरुढ़ हो बहुसाल उद्यान में पहुँचा । विधिपूर्वक सभा में जाकर वन्दन नमस्कार कर भगवान का उपदेश सुनने लगा। __ देवानन्दा भगवान को अनिमेष दृष्टि से देखने लगी । उसका पुत्र-स्नेह उमड़ पड़ा। स्तनों में से दूध को धारा बह निकली। उसकी कंचुकी भीग गई। उसका सारा शरीर पुलकित हो उठा। देवानन्दा के इन शारीरिक भावों को देखकर गौतम स्वामी ने भगवान से प्रश्न किया -भगवन् ! भापके दर्शन से देवानन्दा का शरीर पुलकित क्यों हो गया ? इनके नेत्रों में इस प्रकार की प्रफुल्लता कैसे भागई और इनके स्तनों से दुग्धस्राव क्यों होने लगा ? भगवान ने उत्तर दिया-गौतम ! देवानन्दा मेरी भाता है और मैं इनका पुत्र हूँ। देवानन्दा के शरीर में जो भाव प्रकट हुए उनका कारण पुत्रस्नेह ही है। उसके बाद भगवान ने महती सभा के बीच अपनी माता देवानन्दा को एवं पता ऋषभदत्त को उपदेश दिया। भगवान का उपदेश सुनकर दोनों को वैराग्य उत्पन्न गया। परिषद् के चले जाने पर ऋषभदत्त उठा और भगवान को वन्दन कर वोला-भगवन् ? आपका कथन सत्य है । मैं आपके पास प्रव्रज्या लेना चाहता हूँ। आप मुझे स्वीकार कीजिये । इसके बाद ऋषभदत्त ने गृहस्थवेष का परित्याग कर मुनिवेष पहन लिया और भगवान के समीप सर्व विरति रूप प्रव्रज्या ग्रहण करली। माता देवानन्दा ने भी अपने पति का अनुसरण किया । उसने आर्या चन्दना के पास दीक्षा ग्रहण करली। ____ भगवान के पास प्रव्रज्या लेने के वाद ऋषभदत्त अनगार ने स्थविरों के पास सामायिकादि एकादश अंगों का अध्ययन किया और कठोर तप
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy