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________________ २२६ आगम के अनमोल रत्न कर अशोकवृक्ष के नीचे ध्यान करने लगे । यहाँ चमरेन्द्र ने शकेन्द्र के वज्र से भयभीत होकर भगवान की शरण ग्रहण की। . दूसरे दिन भगवान भोगपुर पधारे । यहाँ महेन्द्र नामक क्षत्रिय भगवान को लकड़ी लेकर मारने भाया किन्तु सनत्कुमार देवेन्द्र ने उसे समझाकर रोक दिया । ____भोगपुर से विहार कर प्रभु नंदी गांव आये और मेंढक गांव होकर कोशॉबी नगरी में आये । पौष वदि प्रतिपदा का दिन था । भगवान ने उसदिन तेरह बोल का भीषण अभिग्रह ग्रहण किया। राजकन्या हो, अविवाहित हो, सदाचारिणी हो, निरपराध होने पर भी जिसके पावों में वेड़ियाँ तथा हाथों में हथकड़ियाँ पड़ी हुई हों, सिर मुण्डा हुआ हो, शरीर .पर काछ लगी हुई हो, तीन दिन का उपवास किये हो, पारणे के लिए उड़द के बाकले सूप में लिये हुए हो, न घर में हो, न वाहर हो, एक पैर देहली के भीतर तथा दूसरा बाहर हो । दान देने की भावना से अतिथि की प्रतीक्षा कर रही हो, प्रसन्नमुख हो और आंखों में आंसू भी हों, इन तेरह बातों से युक्त कोई स्त्री मुझे आहार दे तो मैं उसी से आहार करूँगा।' उक्त प्रतिज्ञा करके भगवान प्रतिदिन कोशांबी में आहार के लिये जाते परन्तु कहीं भी अभिग्रह पूर्ण नहीं होता था । इसप्रकार भगवान महावीर को भ्रमण करते करते चार मास बीत गये परन्तु उन्हें आहार लाभ न हुआ । वे नन्दा के घर आये । नन्दा कोशांवी के महामात्य सुगुप्त की पत्नी थी। नन्दा बड़े आदर के साथ आहार लेकर उपस्थित हुई परन्तु महावीर का अभिग्रह पूर्ण न होने से वे वापिस लौट गये । नन्दा को बहुत दुःख हुआ। उसने मंत्री से कहा"इतने दिन हो गये, भगवान को भिक्षा नहीं मिल रही है, अवश्य ही कोई कारण होना चाहिये । कोई ऐसा उपाय कीजिए जिससे उन्हें आहार मिले ।" उस समय नन्दा के घर मृगावती की प्रतिहारी, भाई
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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