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________________ २२० आगम के अनमोल रत्न शत्रुपक्ष का आदमी मानकर पकड़ लिया । यहाँ उत्पल ज्योतिषी ने राजा को आपका परिचय देकर आपको मुक्त करवा दिया। वहाँ से पुरमिताल, उन्नाग तथा गोभूमि होते हुए वे राजगृह पधारे । आठवां चातुर्मास आपने राजगृह में ही व्यतीत किया । ____चातुर्मास के बाद विशेष कर्मों को खपाने के लिये आपने वज्रभूमि तथा शुद्धभूमि जैसे अनार्य प्रदेश में विहार किया यहाँ भी आपको अनेक प्रकार के उपसर्ग सहने पड़े । अनार्य भूमि में भापको चातुर्मास के योग्य कहीं भी स्थान नहीं मिला अतः आपने नौवाँ चातुर्मास चलते फिरते व्यतीत किया । अनार्य भूमि से निकल कर भगवान गोशालक के साथ कूर्मप्राम पधारे । कूर्मग्राम के बाहर वैश्यायन नामक तापस औंधे मुख लटकता हुभा तपस्या कर रहा था। धूप से भाकुल होकर उसकी जटाओं से जूएँ गिर रही थीं और वैश्यायन उन्हें पकड़ पकड़ कर अपनी जटा में डाल देता था । गोशालक यह दृश्य देखकर बोला-भगवन ! यह जुओं को स्थान देने वाला मुनि है या पिशाच ? गोशालक ने बार बार उक्त बात दोहराई । गोशालक के मुँह से बारबार उक्त बातें सुनकर वह अत्यन्त ऋद्ध हुआ और उसने गोशालक को मारने के लिये तेजोलेश्या छोड़ी परन्तु उसी समय भगवान ने शीतटेश्या छोड़कर गोशालक को बचा लिया । इस अवसर पर गोशालक ने तेजोलेश्या प्राप्ति का उपाय भगवान से पूछा । भगवान ने उसे उपाय बता दिया। तेजोलेश्या की साधना करने के लिये वह भनवान से जुदा हुआ और श्रावस्तीमें हालाहला कुम्भारिण के घर रहकर तेजोलेश्या की साधना करने लगा। • भगवान की कहीहुई विधि के अनुसार छः मास तक तप और मातापना करके गोशालक ने तेजोलेश्या प्राप्त कर ली और परीक्षा के तौर पर उसका पहला प्रयोग कुएँ पर पानी भरती हुई एक दासी पर किया ।
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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