SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 253
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २१९ ~ तीर्थकर चरित्र : गुप्तचर समझकर राजपुरुषों ने पकड़ा पीटा और कैद करलिया । विजया और प्रगल्भा नाम की परिवाजिका को जब इस बात का पता चला तो वह तत्काल राजपुरूषों के पास पहुंची और उन्हें महावीर का परिचय दिया। महावीर का वास्तविक परिचय जब राजपुरुषों को मिला तो उन्होंने भगवान से क्षमायाचना की और भगवान को वन्दन कर उन्हे विदा किया । कुपियसन्निवेश से भगवान ने वैशाली की ओर विहार किया । गोशालक ने इससमय आपके साथ चलने से इन्कार कर दिया। उसने कहा आपके साथ रहते हुए मुझे बहुत कष्ट उठाना पड़ता है परन्तु भाप कुछ भी सहायता नहीं देते इसलिये मै आपके साथ नहीं चलूँगा। भगवान ने कुछ नहीं कहा। ___ भगवान क्रमशः वैशाली पहुंचे और लोहे के कारखाने में ठहरे। यहाँ एक लोहार भगवान के दर्शन को अमंगल मानकर हथौड़ा लेकर उन्हें मारने के लिये दौड़ा परन्तु उसके हाथ पांव वहीं स्थंभित होगये। वैशाली से आप प्रामाक सन्निवेश पधारे । वहाँ बिमेलक यक्ष ने आपकी खूब महिमा की । प्रामाक से शालिशीर्ष पधारे । यहाँ कटपूतना नाम को व्यंतरी ने आपको बड़ा कष्ट दिया । अन्त मैं वह भगवान की प्रशंसक बनी। ' शालिशीर्ष से विहार कर भहिया नगरी आये और छठा चातुर्मास आपने भदिया में ही व्यतीत किया । चातुर्मास समाप्ति के वाद चातुर्मास तप का पारणा नगरी के बाहर किया । वहाँ से आपने मगधदेश की ओर विहार कर दिया। सातवाँ चतुर्मास आपने मगधदेश को नगरी आलंभिया में व्यतीत किया। चातुर्मास समाप्ति पर आपने चातुर्मासिक तप का पारणा किया। वहां से विहार कर आप कुण्डाक सन्निवेश होते हुए महना सन्निवेश बहुसाल तथा लोहार्गल पधारे । लोहार्गल के राजा जितशत्रु ने आपको
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy