SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 251
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तीर्थङ्कर चरित्र . . . २१७ 'वित हुआ और उसने महावीर का शिष्य होने का निश्चय कर लिया। उसने भगवान से भेंट की और अनेक वार अपना शिष्यत्व स्वीकार करने की प्रार्थना की। अन्त में भगवान ने मौनभाव से उसका शिष्यत्व स्वीकार कर लिया । ___ चातुर्मास की समाप्ति के बाद भगवान कोल्लागसन्निवेश पधारे । कोल्लाग से भगवान गोशालक के साथ सुवर्णखल, नन्दपाटक, आदि गांवों में होते हुए चंपा पधारे । तीसरा चातुर्मास भगवान ने चंपा में ही व्यतीत किया। इस चातुर्मास में भगवान ने दो दो मास की तपस्या की । पहले दो मास खमण का पारणा चम्पा में किया और दूसरे दो मास खमण का पारणा चंपा के वाहर । वहाँ से आपने कालायसन्निवेश की ओर विहार कर दिया। पत्तकालय, कुमार सन्निवेश, चोराकसन्निवेश आदि गावों में अनेक प्रकार के उपसर्ग और परिषह सहते हुए भगवान पृष्ठचंपा पधारे । चौथा चातुर्मास आपने पृष्टचम्पा में ही , व्यतीत किया । चातुर्मास समाप्त होने पर वाहरगांव में तप का पारणा कर आपने कयंगला की ओर विहार कर दिया । कयंगला में दरिदथेर के मन्दिर में एक रात रहे । साथ में गोशालक भी था। दूसरे दिन विहार कर भगवान श्रावस्ती पधारे। भगवान ने वहाँ कायोत्सर्ग किया । वहाँ से हलिदुग नामक विशाल वृक्ष के नीचे ध्यान किया । वहाँ आग के कारण ध्यानस्थ भगवान के पैर झुलस गये । दोपहर के समय भगवान ने वहाँ से विहार किया और नंगला -गांव के बाहर वासुदेव के मन्दिर में जाकर ठहरे । नंगला से आप आवत्ता, गांव गये और बलदेव के मन्दिर में ध्यान किया । आवत्ता से विचरते हुए भगवान और गोशालक चोरायसन्निवेश होकर कलं. वुभासन्निवेश की ओर गये। - कलंबुआ के अधिकारी मेघ और कालहस्ती जमींदार होते हुए भी आस पास के गांवों में डाका डालते थे। जिस समय भगवान वहाँ
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy