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________________ आगम के अनमोल रत्न भगवान ने आगे विहार किया और उत्तर वाचाला में नागसेन के घर पर जाकर पंद्रह दिन के उपवास का पारणा खीर से किया। वहाँ देवताओं ने पाच दिव्य प्रकट किये। नागसेन का लड़का १२ वर्षों से बाहर चला गया था । अकस्मात् वह भी इसी दिन घर वापस लौटा। उत्तरवाचाला से विहार कर भगवान श्वेताम्बी आये। वहां के राजा प्रदेशी* ने भगवान को वैभवपूर्वक वन्दन किया । वहाँ से भगवान ने सुरभिपुर की ओर विहार किया। सुरभिपुर जाते हुए, मार्ग में भगवान को रथों पर जाते हुए पांच नैयक राजे मिले। उन सब ने भगवान को वन्दन किया । ये प्रदेशी राजा के पास जा रहे थे। ____ आगे विहार करते हुए रास्ते में गंगा नदी आयी। भगवान ने सिद्धदत्त नाविक की नौका में बैठकर गंगा पार की। नौका पार करते समय सुदंष्ट्र नामक देव ने नौका को उलटने की कोशिश की किन्तु भगवान के भक्क कम्बल भौर शंबल नाम के नागकुमार देवों ने उसके इस दुष्ट प्रयत्न को सफल नहीं होने दिया । भगवान नौका से उतरकर थूनाकसन्निवेश पधारे और वहाँ गांव के बाहर ध्यान करने लगे। थूनाकसन्निवेश में "पुष्य' नामक सामुद्रिक महावीर के सुन्दर लक्षण देखकर बड़ा प्रभावित होगया । उसे पता लगा कि यह भिक्षु भावी तीर्थङ्कर है। - .. भगवान थूनाक से विहार कर राजगृह पधारे । वहाँ तन्तुवाय की शाला में ठहरे और वर्षाकाल वहीं व्यतीत करने लगे । इसो तन्तुवाय शाला में गोशालक नामक एक मंखजातीय युवाभिक्षु भी चातुर्मास बिताने के लिये ठहरा हुआ था। भगवान महावीर मास खमण के अन्त में आहार लेते थे। महावीर के इस तप ध्यान और अन्य गुणों से गोशालक बहुत प्रभा [* यह प्रदेशीराजा केशी श्रमण से श्रावकनत ग्रहण करने वाले प्रदेशीराजा से भिन लगता है।]
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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