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________________ तीर्थकर चरित्र ९-समस्त देवदेवेन्द्र आपको सेवा करेंगे । -- - - १०-आपने पुष्प की दो माला देखी है लेकिन उसका फल मैं नहीं जानता । अपने इस स्वप्न का फल खुद भगवान ने बतलाते हुए कहा-उत्पल ! इस स्वप्न का फल यह है कि मैं साधु और गृहस्थ ऐसे दो धर्म की प्ररूपणा करूँगा। यह प्रथम वर्षावास भगवान ने १५-१५ उपवास की आठ तपस्याओं से पूर्ण किया । मार्गशीर्ष कृष्ण प्रतिपदा को भगवान ने अस्थिक गांव से विहार कर दिया । भगवान मोराक सन्निवेश पधारे । वहाँ अच्छंदक नामक एक पाखण्डी रहता था । वह ज्योतिष मंत्र-तंत्रादि से अपनी आजीविका चलाता था। उसका सारे गांव में प्रभाव था । उसके प्रभाव को सिद्धार्थ व्यन्तर सह नहीं सका । इससे प्रभु की पूजा कराने के विचार से उसने गांव वालों को चत्मकार दिखाया । इससे लोग अच्छंदंक की उपेक्षा करने लगे। अपनी महत्ता घटते देख वह भगवान के पास आया और प्रार्थना करने लगा-देव ! आप अन्यत्र चले जाइए कारण कि आपके यहां रहने से मेरी आजीविका ही नष्ट हो जायगी और मैं दुःखी हो जाऊँगा। ऐसी परिस्थिति में भगवान ने वहाँ रहना उचित नहीं समझा और वहाँ से वाचाला की ओर विहार कर दिया। वाचाला नाम के दो सन्निवेश थे। एक उत्तर वाचाला और दूसरा दक्षिणवाचाला। दोनों सन्निवेशों के बीच सुवर्णवालुका तथा रौप्यबालुका नामकी दो नदियाँ वहती थीं । भगवान महावीर दक्षिण वाचाला होकर उत्तर वाचाला जा रहे थे। उस समय उनके दीक्षा के समय का आधा देवदूष्य सुवर्णवालुका नदी के किनारे काँटों में फंस गया । भगवान महावीर उसे वहीं छोड़ कर भागे चले और बाद में कभी वस्त्रग्रहण नहीं किया । आधा देवदूष्य पाने के लिये जो सोम नामक ब्राह्मण, १३ महिनों से महावीर के पीछे-पीछे घूमता था,
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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