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________________ २०२ आगम के अनमोल रत्न । उस समय इन्द्र का भासन प्रकम्पित हुआ। अवधिज्ञान से उसने भगवान को पाठशाला में बैठा हुआ देखा । वह उसीक्षणं वृद्ध ब्राह्मण का रूप बनाकर पाठशाला में उपस्थित हुआ। कुमार महावीर को प्रणाम कर वह व्याकरण विषयक विविध प्रश्न कुमार महावीर से पूछने लगा । भगवान महावीर अलौकिक ज्ञानी तो थे ही उन्होंने सुन्दर ढंग से वृद्ध ब्राह्मण के प्रश्नों का उत्तर दिया । - - - - : . कुमार के विद्वत्तापूर्ण उत्तरों से पाठशाला का अध्यापक चकित हो गया। वह अपने शंकास्थलों को याद कर कुमार महावीर से पूछने लगा। महावीर ने अध्यापक के सभी प्रश्नों का समाधान कर दिया । महावीर की इस अलौकिक बुद्धि और विद्वत्ता से अध्यापक दंग रह गया । तब ब्राह्मण वेशधारी , इन्द्र ने अध्यापक से कहा "पण्डित ! यह वालक कोई साधारण छात्र नहीं है। यह सकल शास्त्रपारर्गत भगवान महावीर हैं।" अध्यापक अपने सामने अलौकिक वालक को देखकर चकित हो गया। उसने भगवान को प्रणाम किया। इन्द्र ने भी अपना असली रूप प्रकट किया और भगवान को प्रणाम कर अपने स्थान चला गया। महावीर के मुख से निकले हुए वचन 'ऐन्द्र' व्याकरण के नाम से प्रसिद्ध हुए। - भगवान महावीर को अलौकिक पुरुष मानकर अध्यापक बालक महावीर को लेकर राजा सिद्धार्थ के पास आया और बोला-भगवान महावीर स्वयं अलौकिक ज्ञानी हैं। उन्हें पढ़ाने की आवश्यकता नहीं। भगवान महावीर ने बाल्यावस्था को पार कर यौवनवय में प्रवेश किया । महावीर के अलौकिक रूप और बलबुद्धि की प्रशंसा सुनकर अनेक देश के राजाओं ने राजकुमार महावीर के साथ अपनी राजकन्याओं का वैवाहिक सम्बन्ध जोड़ने के लिये सन्देश भेजे किन्तु विरक्त महावीर ने उन्हें वापिस लौटा दिया । अन्त में अपनी अनिच्छा होते हुए भी भोगावली कर्म को शेष जानकर एवं मातापिता तथा बड़ेभाई
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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