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________________ २०० आगम के अनमोल रत्न . राजा सिद्धार्थ ने नगर में दसदिन का उत्सव मनाया । प्रजा के आनन्द और उत्साह की सीमा न रही । सर्वत्र धूम मचगई । कैदियों को बन्धन मुक्त कर दिया । प्रजा को कर मुक्त किया । सारा नगर उत्सव और आनन्द का स्थान बन गया । ___ जन्म के तीसरे दिन चन्द्र और सूर्य का दर्शन कराया गया। छठे दिन रात्रिजागरण का उत्सव हुमा । बारहवें दिन नामसंस्कार कराया गया । राजा सिद्धार्थ ने इस प्रसंगपर अपने मित्र, ज्ञातिजन, कुटुम्बपरिवार एवं स्नेहियों को आमन्त्रित किया और भोजन, ताम्बूल,वस्त्रअलंकारों से सब का सत्कार कर कहा-जब से बालक हमारे कुल में अवतरित हुआ है तवसे हमारेकुल में धनधान्य, कोश, कोष्टागार, बल, स्वजन और राज्य में वृद्धि हुई है । अतःहम इस बालक का नाम 'वर्धमान' रखना चाहते हैं। सवने इस सुन्दर नाम का अनुमोदन किया । वर्धमानकुमार का बाल्यकाल दासदासियों एवं पांच धात्रियों के संरक्षण में सुखपूर्वक वीतने लगा।। वर्धमानकुमार ने आम्वर्ष की अवस्था में प्रवेश किया । एकबार वे अपने समवयस्क बालकों के साथ प्रमदवन में आमलकी नामक खेल खेलने लगे। उस समय इन्द्र अपनी देवसभा में वर्द्धमानकुमार की प्रशंसा करते हुए कहने लगे-वर्धमानकुमार बालक होते हुए भी बड़े पराक्रमी है । विनयी और बुद्धिमान हैं । इन्द्र देव दानव कोई भी उन्हें पराजित नहीं कर सकता। एक देव को इन्द्र की इसबात पर विश्वास नहीं हुआ। वह वर्धमानकुमार के बल, साहस एवं धैर्य की परीक्षा करने की इच्छा से जहाँ वर्धमानकुमार अपने साथियों के साथ खेल रहे थे वहाँ आया भौर भयंकर सर्प का रूप धारण करके पीपल वृक्ष से लिपट गया । उस समय वर्धमानकुमार साथियों के साथ पीपल पर चढ़े हुए थे। फूत्कार करते हुएं भयानक सर्प को देखकर सभी वालक भय से कांपने लगे और बचाओ ! वचाभो !! की आवाज से रोने लगे किन्तु 'वर्ध
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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