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________________ तीर्थदर.चरित्र १९९९ तो सारा " मेरुपर्वत कम्पायमान हो गया । मेरुपर्वत- के अचानक हिल उठने से इन्द्र विचार में पड़ गया । अवधिज्ञान का उपयोग लगाया तो उसे पता चला कि भगवान ने तीर्थकर के अनन्तवली होने की वात बताने के लिये ही मेरुपर्वत को अंगूठे के स्पर्शमात्र से हिलाया है । इन्द्र ने उसीसमय भगवान से क्षमा मांगी 1 अभिषेक के बाद इन्द्र ने भगवान के अंगूठे .में अमृत भरा और नंदीश्वरः पर्वतपर अष्टाहिक महोत्सव मनाकर और फिर अष्टमंगल का आलेखन करके और. स्तुति करके भगवान को अपनी माता के पास वापिस रख दिया । __प्रात.काल प्रियंवदा नामकी दासी ने राजा सिद्धार्थ को पुत्र जन्म की खबर सुनाई । राजा ने मुकुट और कुंडल को छोड़कर अपने समस्त आभूषण दासी को भेंट में दे दिये और उसे दासीत्व से मुक्त कर दिया। बारह योद्धाओं का वल १ सांड (बैल) - में होता है। दस बैलों का वल एक घोड़े में होता है । बारह -घोड़ों का बल एक भैसे में होता है । पन्द्रह भैसों का वल एक मत्त हाथी में होता. है। पांचसौ भत्तहाथियों का बल एक केशरीसिंह में होता है । दोहजार केशरीसिंह का बल एक अष्टापदपक्षी में होता है। दूसलाख. अष्टोंपदों का वल एक वलदेव में होता है। दो वलदेवों का बल एक वासुदेव में, दो वासुदेवों का बल एक चक्रवर्ती में, एकलाख चक्रवर्तियों. का बल एक नागेन्द्र में और एककरोड नागेन्द्रों का बल एक इन्द्र में होता है। ऐसे असंख्य इन्द्र मिलकर भी भगवान की चट्टी-सबसे छोटी मंगुली को नमाने में समर्थ नहीं हैं। इसलिये तीर्थकर भगवान 'अतुल'बलधारी' कहलाते हैं। *तीर्थंकरों में कितना बल होता है ! उसका उल्लेख इस प्रकार मिलता है।
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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