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________________ तीर्थकर चरित्र १७७ में उत्पन्न हुए मरुभूति देव के साथ ही क्रीडा करती हुई अपना सुखमय जीवन विताने लगो। . कमठ का जीव भी मरकर पांचवें नरक में १७ सागरोपम की भायुवाला नारकी हुमा । चौथा और पाँचवाँ भव __ पूर्व विदेह के सुकच्छ विजय में तिलका नाम की नगरी थी। उस नगरी में विद्युत्वेग नाम का खेचर राजा राज्य करता था। उसकी रानी का नाम 'कनकतिलका' था । मरुभूति का जीव सहस्रार कल्प से च्युत होकर महारानी कनकतिलका के उदर में पुत्र रूप से उत्पन्न हुआ। गर्भकाल के पूर्ण होने पर रानी ने एक सुन्दर बालक को जन्म दिया । उसका नाम किरणवेग रखा । युवा होने पर पद्मावती आदि सुन्दर राजकुमारियों के साथ उसका विवाह हुआ। कुछ कालके बाद विद्युत्वेग ने किरणवेग को राज्य देकर दीक्षा ग्रहण की। किरणवेग को किरणतेज नाम का पुत्र हुमा । एक वार सुरगुरु नाम के आचार्य पधारे । उनका उपदेश सुनकर किरणवेग को वैराग्य उत्पन्न हो गया और उसने अपने पुत्र को राज्य देकर दीक्षा ग्रहण कर ली। मुनि किरणवेग एक बार हिमगिरि पर्वत की गुफा में ध्यान कर रहे थे। इतने में जिस कुक्कुट सर्प ने मरुभूति हाथी को काटा था वही पापी धूमप्रभा नरक से निकल कर भगर के रूप में उत्पन्न हुआ । वह घूमता हुआ मुनिराज के पास आया । मुनिराज को देखते हो उसके मन में वैर जागृत हो गया। वह उन्हें निगल गयो । समभाव से भरकर मुनि बारहवें देवलोक में जम्बूद्मावर्त नाम के विमान में बाईस सागरोंफ्म की स्थिति वाले देव बने । कमठ का जीव अजगर की योनि में दावाग्नि में जलकर मरा और तमःप्रभा नाम के नरक में उत्पन्न हुआ । १२ .
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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