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________________ १७६ आगम के अनमोल रत्न मुनिका याद मुनि अवधिज्ञान से उसके पूर्वभव को जानकर बोले-गजराज अपने पूर्वभव को याद कर ! मुझ अरविंद को पहचान । तू पूर्वभव में मेरे पुरोहित विश्वभूति का पुत्र और कमठ का बड़ा भाई था । आर्तध्यान से मरकर 'तू तिर्यञ्च हो गया है। हाथी चमका; उसे पूर्वभव याद आया । जातिस्मरण ज्ञान से उसने अपने पूर्व को अच्छी तरह से जान लिया । मुनि का उपदेश सुनकर गजराज मरुभूति ने श्रावक के व्रत प्रहण किये । कमठ की स्त्री वरुणा भी हथिनी हुई थी। उसने भी सारी बाते सुनी और उसे भी जातिस्मरणज्ञान उत्पन्न होगया । सेठ के साथ के अनेक मनुष्य तप का प्रभाव देखकर मुनि हो गये । अरविंदमुनि सार्थवाह के काफिले के साथ अष्टापद की ओर विहार कर गये । अब मरुभूति हाथी श्रावक बन गया । वह सूर्य के ताप से तपा हुमा पानी पीता । सूखीघास और सूखेपत्ते खाता । ब्रह्मचर्य से रहता और किसी प्राणी को नहीं सताता । रात-दिन वह सोचता मैंने कैसी भूल की कि मनुष्य भव पाकर उसे व्यर्थ खो दिया। अगर मैं संयमी बन जाता तो पशुजन्म में नहीं आता । इसप्रकार विचार करता हुआ वह संयमपूर्वक काल यापन करने लगा। शुष्क आहार से उसका शरीर क्षीण हो गया । एक दिन वह पानी पीने के लिये सरोवर में गया । वहाँ वह दलदल में फंस गया। उससे निकला नहीं गया । उधर कमठ के उस हत्यारे काम से सारे तापस उससे नाराज होगये उन्होंने उसे आश्रम से निकाल दिया। वह भटकता हुआ मरकर, कुक्कुट साँप हुआ । वह सर्प वहाँ पहुँचा और उसने हाथी को प्राणघातक डंक मारा । हाथी के सारे शरीर में जहर व्याप्त हो गया। अपने मन को समभाव में स्थिर रखकर वह मरा और सहस्रारकल्प में महर्द्धिक देवता बना । वरुणा का जीव हथिनी भी थोड़ेसमय बाद मृत्यु पाकर दूसरे देवलोक में देवी बनी। पूर्वभव के स्नेह के कारण वह सहस्रार देवलोक
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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