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________________ NNNNNN तीर्थङ्कर चरित्र युवक अरिष्टनेमि को इस रागरंग में कोई अभिरुचि नहीं थी। वे एकान्त में वृक्ष की शीतल छाया में बैठकर संसार की विचित्रता का विचार करने लगे। सत्यभामा की दृष्टि एकान्त में बैठे हुए कुमार अरिष्टनेमि पर पड़ी । भच्छा अवसर देखकर वह भी अपनी सहेलियों के साथ उनके पास पहुँच गई। वस्तुतः यह सारा आयोजन अरिष्टनेमि को लक्ष्य करके ही किया गया था । अवसर पाकर सत्यभामा अरिष्टनेमि से कहने लगी देवरजी ! योगसाधना का समय अभी दूर है । भोग की साधना में सिद्धि प्राप्त करने के बाद योग की साधना सरल हो जावेगी । मुझे आपकी यह एकान्तप्रियता अच्छी नहीं लगती । आप के भाईबन्द सृष्टि-सौन्दर्य का रसपान कर रहे हैं और आप वृक्ष के नीचे बैठे बैठे आत्मा परमात्मा की बातें सोच रहे हैं । आपकी इस उदासीनता के कारण हमारा सारा उत्सव रसरहित हो गया है। आप भी आओ और इस आमोद प्रमोद में समुचित भाग लो। जीवन की ऐसी घड़ियाँ बार बार नहीं आती। मैं जानती हूँ आपके अकेलेपन का कारण । आपको एक योग्य सहचरी की आवश्यकता है । क्या यह वात सच है न ? कुमार भरिष्टनेमि चुपचाप सत्यभामा की यह वात सुन रहे थे। उन्होंने भाभी की इस मोहदशा पर मुस्करा दिया । वह सोचने लगेअनन्तकाल तक भोगने पर भी जिनसे तृप्ति नहीं हो सकी, जो दुर्गति के कारण हैं और जिनसे आत्मा का अधःपतन होता है, उन भोगों के प्रति इतनी उत्सुकता क्यों है ? जिस देवदुर्लम देह से अनुत्तर और अव्यावाधसुख की प्राप्ति होती है उस मानवदेह को भोग की भट्टी में झोंक देना क्या विडंवना नहीं है ? इस प्रकार संसार की विचित्र दशा पर कुमार भरिष्टनेमि को हँसी भा गई । सत्यभामा ने इस हँसी को विवाह का सूचक समझ लिया, यही नहीं, उसने कुमार की स्वीकृति की घोषणा भी कर दी।
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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