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________________ तीर्थकर चरित्र १५७ न झुका सकेगा वही कम ताकतवाला माना जायगा । भरिष्टनेमि के इस प्रस्ताव को श्रीकृष्ण ने मान लिया और उसीक्षण उन्होंने अपना हाथ लम्बा कर दिया । अरिष्टनेमि ने उनका हाथ इसतरह से झुका दिया जैसे कोई त की पतली लकड़ी को झुका देता है। फिर अरिष्टनेमि ने अपना हाथ लम्वा किया परन्तु श्रीकृष्ण उसे नहीं झुका सके । श्रीकृष्ण ने अपना पूरा वल भाजमा लिया पर भुजा ज्यों की त्यों अकड़ी रही। श्रीकृष्ण स्वयं उनकी भुजा पर लटक गये. किन्तु वे अरिष्टनेमि की भुजा को नहीं झुका सके । श्रीकृष्ण ने अजेयवली भाई को स्नेहातिरेक में गले लगाया । वे भगवान अरिष्टनेमि के इस अपरिमेय बल को देख कर चिन्तित हो उठे। उनके मन में कई प्रकार की शंका-कुशंका होने लगीं । वे अपने महल में आकर सोचने लगे-अगर अरिष्टनेमि इतना शक्तिशाली व्यक्ति है तो कहीं सारे भरतखण्ड में अपना राज्य स्थापित करने की लालसा तो उसके हृदय में जागृत नहीं हो जायगी ? इतने में कुलदेवी ने आकर कहा-हे कृष्ण ! चिन्ता की बात नहीं है । अरिष्टनेमि २२वें तीर्थङ्कर हैं। वे राज्यप्राप्ति के लिये नहीं किन्तु जगत का उद्धार करने के लिए ही जन्मे हैं । यह कहकर देवी अन्तर्द्वान हो गई । देवी के मुख से बात सुनकर श्रीकृष्ण की चिन्ता कुछ कम हुई फिर भी विचार आया-मै सोलहहजार स्त्रियों के साथ भोग भोगता हूँ और अरिष्टनेमि अखण्ड ब्रह्मचारी है इसी कारण उसका बल प्रवल है और वह अजेय है । यदि उसका विवाह हो जाय तो मेरा बलप्रयोग उस पर सफलता प्राप्त कर सकेगा। श्रीकृष्ण ने अरिष्टनेमि को विवाहित करने का निश्चय किया। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए उन्होंने सत्यभामा को सहायक बनाया । उससे कहा-प्रिये ! तुम जानती हो कि अरिष्टनेमि युवा हो गया है फिर भी अविवाहित है । उसके माता-पिता बहू को देखने के लिए
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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