SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 187
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तीर्थङ्कर चरित्र गया और उसने यशोमती शंख को सौंप दी । शंख की वीरता से प्रसन्न हो कर अनेक विद्याधरों ने भी अपनी कन्याएँ उसे अर्पण की। शख सव को लेकर हस्तिनापुर गया । शंख की पराक्रम-गाथा सुनकर उसके माता-पिता को बड़ी प्रसन्नता हुई। शंख के पूर्वजन्म के बंधु सूर और सोम भी आरण देवलोक से चवकर श्रीषेण के घर यशोधर और गुणधर नाम से पुत्र हुए। ___ राजा श्रीषेण ने पुत्र को राज्यदेकर दीक्षा ली। जव उन्हें केवलज्ञान हुआ तव राजा शंख अपने छोटे भाइयों के साथ उनकी देशना सुनने गया । देशना के अन्त में शंख ने पूछा-भगवन् ! मेरा यशोमती पर इतना अधिक स्नेह क्यों है ? श्रीषेण केवली ने कहा-जब तू धनकुमार था तब यह तेरी धनवती पत्नी थी। सौधर्म देवलोक में यह तेरी मित्र हुई । चित्रगति के भव में यह तेरी रत्नवती नाम की प्रिया थी। माहेन्द्र देवलोक में यह तेरी मित्र थी । अपराजित के भव में यह तेरी श्रीतिमती नाम की पत्नी थी । आरण देवलोक में यह तेरी मिन हुई । इस भव में यह तेरी यशोमती नाम की पत्नी हुई है । इसतरह यगोमती के साथ तुम्हारा सात भवों का सम्बन्ध है । आगामी भव में तुम दोनों अपराजित देवलोक में उत्पन्न होओगे और वहाँ से चक्कर तू भरतखण्ड में नेमिनाथ के नाम का २२ वा तीर्थकर होगा । यशोमती राजीमती नाम की स्त्री होगी। तुमसे ही विवाह का निश्चय कर यह अविवाहित अवस्था में ही दीक्षित बनेगी और मोक्ष में जाएगी । ____ अपने पूर्वभव का वृत्तान्त सुन शंख को वैराग्य उत्पन्न हो गया । उसने अपने पुत्र को राज्य देकर दीक्षा ले ली। यशोमती ने एवं उनके छोटे भाइयों ने एवं मित्रों ने भी शंख राजा के साथ दीक्षा ग्रहण की। शंख मुनि ने वोस स्थानों की आराधनाकर तीर्थङ्कर नामकर्म का उपार्जन किया।
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy