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________________ १५२ आगम के अनमोल रत्न मनोगति और चपलगति के जीव माहेन्द्र देवलोक से .चवकर अपराजित के सूर और सोम नाम के अनुज वन्धु हुए । राजा हरिनन्दी ने अपराजित को राज्य देकर दीक्षा ली और तप करके वे मोक्ष गये। संसार की अस्थिरता का विचार करते हुए राजा अपराजित को वैराग्य उत्पन्न हो गया। उसने अपने पुत्र पद्मनाभ को राज्यदेकर दीक्षा ले ली । उसके साथ हो उसके भाइयों ने एवं रानी प्रीतिमती ने भी दीक्षा ले ली । वे सभी तप कर वालधर्म को प्राप्त हुए और आरण नामक ग्यारहवें देवलोक में महर्द्धिक देवता बने । • सातवाँ और आठवाँ भव भरतक्षेत्र में हस्तिनापुर नाम का नगर था । वहाँ श्रीषेण नामक राजा राज्य करता था। उसकी रानी का नाम श्रीमती था । अपराजित मुनि का जीव देवलोक से चवकर श्रीमती रानी के उदर से जन्मा । उसका नाम शंख रखा गया । शंख ने शैशव पार किया और यौवन में कदम रखा । इधर प्रीतिमती का जीव भी देवलोक से चवकर अंगदेश की चंपा नगरी के राजा जितारी के घर पुत्री रूप में जन्मा । उसका नाम यशोमती रखा गया । यशोमती अत्यन्त रूपवती थी। उसने श्रीषेण के पुत्र शंख की प्रशंसा सुन रखी थी। उसने मन ही मन शंख को अपने पति के रूप में चुन लिया था । इधर विद्याधरपति मणिशेखर भी यशोमती को चाहता था । उसने जितारी से यशोमती की माग की किन्तु जितारी ने मणिशेखर की मांग को ठुकरा दिया । तब विद्या के बल से मणिशेखर यशोमती को हरकर ले गया । शंखकुमार को जब इस बात का पता लगा तो वह यशोमती को हूँढ़ने निकला । अन्त में एक पर्वत पर मणिशेखर को पकड़ा और उसे ललकारा । दोनों में युद्ध हुभा । मणिशेखर हार
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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