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________________ आगम के अनमोल रत्न विक्रमधन राजा ने राजकुमार धन को राज्यभार सौंप दिया और दीक्षा ग्रहणकर आत्मकल्याण करने लगा। एकबार वसुन्धर नाम के आचार्य का नगर में आगमन हुमा । महाराज धन महारानी धनवती के साथ उनका उपदेश सुनने गया । मुनि का उपदेश सुन उसे वैराग्य उत्पन्न हो गया। उसने अपने छोटे भाई धनदत्त और धनदेव के साथ पुत्र जयन्तकुमार को राज्यभार सौप कर दीक्षा ग्रहण की। दीक्षा लेकर धन-ऋषि कठोरतप करने लगे। धनवती ने भी दीक्षा ग्रहण की। दोनों ने अन्तिमसमय में अनशन ग्रहण किया और मर कर वे सौधर्मेन्द्र के सामानिक देव बने । धनदत्त और धनदेव भी भरकर सौधर्म देवलोक में महर्द्धिक देव बने । तीसरा और चौथा भव भरतक्षेत्र में वैताठ्यपर्वत की उत्तर श्रेणियों में सूरतेज नाम का नगर था । वहाँ सूर नाम का खेचरों का राजा राज्य करता था । उसकी विद्युन्मती नाम की रानी थी । धनकुमार का जीव देवलोक से चवकर महारानी विद्युन्मती के गर्भ में उत्पन्न हुआ। गर्भकाल की समाप्तिपर महारानी ने पुत्र को जन्म दिया। बालक का नाम चित्रगति रखा । क्रमशः बढ़ता हुआ चित्रंगति युवा हुआ । वैताढयपर्वत की दक्षिण श्रेणी में शिवमन्दिर नाम का भगर था। वहाँ अनन्तसिंह नाम का राजा राज्य करता था। उसकी रानी का नाम शशिप्रभा था । धनवती का जीव स्वर्गलोक से चवकर महारानी शशिप्रभा के उदर से पुत्री के रूप में जन्मा। उसका नाम 'रत्नवती' रखा गया । रत्नवती युवा हुई । कालान्तर में रत्नवती का विवाह चित्र'गति के साथ हुआ । सूर राजा ने चित्रगति को राज्य देकर दक्षिा ले ली। चित्रगति न्याय से राज्य करने लगा । एक समय संसार की विचित्रता का विचार करते हुए उसे वैराग्य उत्पन्न हो गया। उसने पुरंदर नामक अपने पुत्र को राज्य देकर पत्नी रत्नवती और अनुज मनो
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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