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________________ तीर्थकर चरित्र १४९ २२. भगवान अरिष्टनेमि प्रथम और द्वितीय भव जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में अचलपुर नाम के नगर में विक्रमधन नाम के प्रतापी राजा राज्य करते थे । उनकी मुख्य रानी का नाम धारिणी था । रात्रि के अन्तिम प्रहर में महारानी धारिणी ने मंजरी से युक्त एक आम्रवृक्ष को स्वप्न में देखा । कोई पुरुष उस आम्रवृक्ष को हाथ में लेकर महारानी से वोला-देवी ! इस आम्रवृक्ष को तुम्हारे आगन में लगा रहा हूँ। कालान्तर में यही आम्रवृक्ष नौ जगह रुपेगा और अधिक से अधिक फल देगा। महारानी इस खप्न को देखकर जागृत हुई। उसने अपने स्वप्न का फल पति से पूछा । पति ने कहामहारानी ! इस स्वन का फल यही है कि तुम सुन्दर पुनरत्न को जन्म दोगी। दूसरे दिन स्वप्नपाठकों को बुलाकर स्वप्न का फल उनसे पूछ। 1 उन्होंने भी यही कहा कि महारानी सुन्दर पुत्र को जन्म देगी किन्तु यह आम्रवृक्ष नौ जगह रुपेगा और फलद्रुम होगा इसका अर्थ हम नहीं जानते । महारानी गर्भवती हुई । गर्भकाल के पूर्ण होने पर रानी ने एक सुन्दर पुत्र को जन्म दिया । उसका नाम धनकुमार रखा गया। धनकुमार धात्रियों के सरक्षण में बड़े हुए । धनकुमार का विवाह कुसुमपुर के राजा सिंह की रानी विमलादेवी से उत्पन्न राजकुमारी धनवती के साथ हुआ। दोनो पति-पत्नी सुखपूर्वक अपना जीवन व्यतीत करने लगे। एक समय धन राजकुमार धनवती रानी के साथ जलक्रीड़ा के लिये सरोवर गये । वहाँ एक मुनि को मूच्छित अवस्था में देखा । राजकुमार धन ने उपचार कर उनकी मूर्छा दूर की । मुनि का नाम मुनिचन्द्र था । राजकुमार मुनि को अपने घर ले गया और निर्दोष आहार पानी देकर उनकी खूब सेवा भक्ति की । मुनि ने उपदेश दिया। मुनि का उपदेश सुनकर उसने सम्यक्त्व सहित श्रावक के व्रत ग्रहण किये । कल्पकाल समाप्त होने पर मुनि ने अन्यत्र विहार कर दिया ।
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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