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________________ आगम के अनमोल रत्न . गोद में उठा लेते थे और मीठी मीठी बाते करते थे किन्तु क्या कारण है कि, आज आप मेरी ओर नजर उठा कर भी नहीं देख रहे हैं ! महाराज कुम्भ-पुत्री ! तुम मेरे लिये अपने प्राणों से अधिक प्यारी हो । तुम्हारी जैसी दिव्य कन्या पाकर मै धन्य हो गया हूँ। पर आज जिस विषमस्थिति में मैं आ पड़ा हूँ उससे छुटकारा पाने का कोई उपाय नहीं दीख रहा है । इसी चिन्ता में मैं पड़ा हूँ कि इस विपत्ति का सामना कैसे किया जाय । मल्ली-~तात ! आप पर आई हुई इस विपत्ति को मैं अच्छी तरह समझती हूँ और इस विपत्ति से छुटकारा पाने का उपाय मेरे पास है। हम युद्ध से शत्रु को परास्त नहीं कर सकते किन्तु बुद्धिबल से ही शत्रुओं पर विजय पा सकते हैं । अगर आपका मेरे पर पूरा भरोसा हो तो आप इस विपत्ति के बादलों को छिन्न भिन्न कर देने का भार मुझ पर छोड़ दें । मैने राजाओं पर विजय पाने का उपाय सोच लिया है । मुझे अपने उपाय पर पूरा विश्वास है । महाराज कुम्भ ने कहा-पुत्री | कौनसा वह उपाय है जिससे ये राजा लोग तुम्हारी बात मान जायेगे । ____मल्ली ने कहा-तात ! मैं क्या करना चाहती हूँ यह तो भाप को यथासमय मालूम हो ही जायगा । आप सब राजाओं के पास अलग अलग दूत भिजवा दीजिये और उन्हे' यह सन्देश कहलवा दीजियेगा कि मै आपको अपनी कन्या देना चाहता हूँ शर्त इतनी हैं कि मेरा सन्देश अन्य राजा तक नहीं पहुँचना चाहिये । महाराज कुम्भ को अपनी पुत्री की बुद्धिमता और विवेक पर पुरा विश्वास था। उसने सभी राजाओं के पास दूत मेजे और उन्हें मोहन घर पर अकेले ही आने को कहा गया । महाराज कुम्भ का दुर द्वारा सन्देश पाकर सभी राजा बड़े प्रसन्न हुये और अकेले ही दूत के साथ मोहन घर में भा पहुँचे । छहों राजाभों को अलग अलग विठलाया गया । छहों राजाओं की मोहन
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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