SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 169
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तीर्थङ्कर चरित्र १३५ दिया । महाराज कुम्भ से अपमानित दूत अपने अपने राजा के पास पहुँचे और उन्होंने सारा वृत्तान्त कह सुनाया । कुम्भ का निराशाजनक उत्तर सुनकर वे बहुत कुपित हुए और सब ने सम्मिलित होकर राजा कुम्भ पर चढ़ाई करने का निश्चय कर लिया । छहों राजाओं ने अपनी अपनी विशाल सेना के साथ मिथिला पर चढ़ाई करने के लिए प्रस्थान कर दिया । इधर महाराज कुम्भ ने भी छहों राजाओं का मुकावला करने के लिये युद्ध की तैयारी करली | कुछ चुनी हुई सेना को ले महाराज कुम्भ भी अपने राज्य की सीमा पर पहुँच गये । दोनों ओर की सेनाओं में घमसान युद्ध प्रारम्भ हो गया । एक ओर छह राजाओं की विशाल सेनाये थीं और दूसरी ओर अपनी कुछ सेना के साथ अकेले कुम्भ । कुम्भ बड़ी वीरता से लड़े किन्तु शत्रुपक्ष को विशाल सेना के सामने इनकी मुट्ठी भर सेना नहीं टिक सकी अन्त में हार कर पीछे हटने लगी और इधर उधर भागने लगी। अपने पक्ष को कमजोर होता देख वे अपने कुछ बहादुर सिपाहियों के साथ नगर लौट आये । नगरी के चहुँओर दरवाज के फाटक बन्द करवा दिये और अपनी सेना को किले पर सजा कर दुष्मनों की प्रतीक्षा करने लगे। इधर छहों राजाओं की सेना ने मिथिला को घेर लिया और नगरी के द्वार को तोड़ कर अन्दर घुसने का प्रयत्न करने लगी | मिथिला की बहादुर सेना ने शत्रुसेना के सब प्रयत्न असफल कर दिये । महाराजा कुम्भ सिंहासन पर बैठे हुये युद्ध की परिस्थिति का विचार कर रहे थे । उसी समय भगवती मल्ली अपने सुन्दर वस्त्राभूषणों में सजी हुई प्रतिदिन के नियमानुसार पिता के चरण छूने आई । पिता के चरण छू कर वह एक ओर खड़ी हो गई । महाराज कुम्भ अपने विचार में इतने निमग्न थे कि उन्हें मल्ली के आने का ध्यान तक नहीं रहा । पिता को अत्यन्त चिन्ता निमग्न देख वह बोलीतात ! जब मैं आपके पास आती तब आप बड़े प्रसन्न होकर मुझे
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy