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________________ १३२ आगम के, अनमोल रत्न अन्दर रही हुई मल्लीकुमारी के अंगूठे पर पड़ी। उसे अपनी क्ला का परिचय देने का एक अच्छा अवसर मिला । उसने उसी क्षण अपनी तूलिका से मल्लीकुमारी का सम्पूर्ण चित्र बना डाला । चित्र क्या था मानों साक्षात् मल्लीकुमारी, ही खड़ी हो । अन्य चित्रकारों ने भी एक से एक सुन्दर चित्रों से सभाभवन को सजाया। युवराज ने चित्रकारों का खूब सत्कार सम्मान किया तथा उन्हें बहुत बडा पुरस्कार देकर बिदा, किया। मल्लदिन्तकुमार धाय माता के साथ चित्रसभा को देखने माया और वहाँ अनेक हावभाव वाली सुन्दर स्त्रियों के चित्रों को देखने लगा । चित्र देखते देखते अचानक ही उसकी दृष्टि भगवती मल्ली के चित्र पर पड़ी। चित्र को ही साक्षात् मल्लीकुमारी समझकर वह लज्जित हुआ और धीरे धीरे पीछे हटने लगा । यह देखकर उसकी धाय माता कहने लगी-पुत्र ! तुम लज्जित. होकर पीछे क्यों हट रहे हो ? मलदिन्न ने कहा-माता! मेरी गुरु और देवता के सामान जेष्ठ भगिनी जो सामने खड़ी है उसके रहते हुए चित्रशाला में प्रवेश करना क्या मेरे लिये योग्य है ?" तब धायमाता ने कहा-"पुत्र ! यह मल्लीकुमारी नहीं है किन्तु उसका चित्र है ।" मल्लीकुमारी के हुबहू चित्र को देखकरे। युवराज मल्लदिन अत्यन्त क्रुद्ध - हुआ । चित्रकार का यह साहस कि ,जिसने मेरी देव गुरु और धर्म की साक्षात् मूर्ति बडी वहन का चित्रशाला में चित्र बना डाला । उसने चित्रकार के वध का हुकुम "सुना दिया । जब अन्य चित्रकारों को इस बात का पत्ता लगा तो वे राजकुमार के पास पहुँचे और राजकुमार से बहुत अनु नये विनय करके चित्रकार . का वध न 'करने की प्रार्थना की । चित्रकारों की प्रार्थना पर राजकुमार में चित्रकार के वध के बदले उसके अंगुष्ठ और कनिष्ठ अंगुली को छेदने की और देश निर्वासन की भाज्ञा दे दी। चित्रकार मिथिला से 'निर्वासित होकर हस्तिनापुर गया । वहाँ उसने मल्लिकुमारी का एक चित्र बनाया और उस चित्रपट को साथ
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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