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________________ तीर्थङ्करं चरित्र १३१ I से निकल पड़े और काशी देश की राजधानी बनारस भा पहुँचे । वे लोग बहुमूल्य उपहार लेकर महाराज शंख की सेवा में पहुँचे और उपहार भेंटकर कहने लगे- स्वामी ! हमलोगों को मिथिला नगरी के कुम्भ राजा ने देश निष्कासन की आज्ञा दी है वहाँ से निर्वासित होकर हमलोग यहाँ आये हैं । हमलोग आपको छत्रछाया में निर्भय होकर सुखपूर्वक रहने की इच्छा करते हैं ।" काशीनरेश ने सुवर्णकारों से पूछा -- "कुम्भराजा ने आपको देश निकाले की आज्ञा क्यों दी ?" स्वर्णकारों ने उत्तर दिया- स्वामी ! कुम्भराजा की पुत्री मल्लीकुमारी का कुण्डलयुगल टूट गया। हमें जोड़ने का कार्य सौंपा गया किन्तु हम लोग उसके संविभाग को जोड़ नहीं सके जिससे कुछ हो महाराजा ने देश निकाले को आज्ञा दी है। शंख राजा ने पूछा- मल्लीकुमारी का रूप कैसा है ? उत्तर में सुवर्णकारोंने कहा - स्वामी । मल्लीकुमारी के रूप की क्या प्रशंसा की जाय उसके रूप के सामने देव कन्या का रूप भी लज्जित है । महाराज शंख ने जब मल्लीकुमारी के रूप की प्रशंसा सुनी तो वह उसपर आसक्त हो गया । महाराज शंख ने सुवर्णकारों को नगरी में रहने की भाज्ञा दे दो । बादमें उसने अपना दूत बुलाया और उसे कहातुम मिथिला जाओ ! और मल्लीकुमारी की मेरी भार्या के रूप में मंगनी करो । अगर इसके लिए राज्य भी देना पड़े तो भी मेरी ओर से स्वीकारे करना । महाराजा की आज्ञा पाकर के दूत ने मिथिला नगरी को भोर प्रस्थान कर दिया । एक समय विदेह के राजकुमार मल्लदिन्न ने अपने प्रमद-वन ( घर के उद्यान) में एक विशाल चित्रसभा का निर्माण कराया, तथा नगर के अच्छे से अच्छे चित्रकारों को चित्रसभा में चित्र निर्माण का आदेश मिला । आदेश पाकर चित्रकारों ने भी विविध चित्रों से चित्र सभा को अलंकृत करना प्रारंभ कर दिया। उनमें एक ऐसा भी चित्र - कार था जो किसी भी पदार्थ का एक भाग देखकर उसका सम्पूर्ण चित्र भलेखित कर लेता था । एकबार इस चित्रकार की दृष्टि - पर्दे के
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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