SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 130
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आगम के अनमोल रत्न wwwwwwwwmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmwwwwwwwwwwwwwwwwwwwmmmmm ओर आते देख दोनों भाई युद्ध के लिये सावधान हो गये । अनन्तवीर्य ने भी विद्या की सहायता से विशाल सेना बना ली । दोनों सेनाओं में जमकर युद्ध होने लगा । अनन्तवीर्य भौर अपराजित के रण कौशल और वीरता के सामने दमितारि की सेना हतोत्साह होगई। दमितारि अपनी सेना की यह हालत देखकर रथ पर चढ़कर युद्ध मैदान में आगया । उसने अनन्तवीर्य को ललकारा । फिर क्या था, दोनों वीरों में डटकर युद्ध होने लगा। अनन्तवीर्य की जबरदस्त ताकत को देखकर दमितारि ने अन्त में चक्र का सहारा लिया । चक्र को आता देख अनन्तवीर्य ने उसे अपने हाथ में झेल लिया और उसी चक्र को दमितारि के शिरच्छेद के लिये फेंका । चक्र ने दमितारि का शिरच्छेद कर दिया । उसी समय देवों ने आकाश से पुष्प वृष्टि की और अनन्तवीर्य को तीनखण्ड के स्वामी वासुदेव के रूप में घोषित किया । अपराजित बलदेव बने । समस्त विद्याधरों ने एवं उनके राजाओं ने, उनको आधीनता स्वीकार कर ली । । । - वासुदेव अनन्तवीर्य एवं बलदेव अपराजित राजकुमारी कनकश्री के साथ शुभा नगरी के लिये रवाना हुए। मार्ग,में कीर्तिधर केवली के दर्शन किये। कीर्तिघर केवली के मुख से अपने पूर्वजन्म का वृतान्त सुनकर कनकधी को वैराग्य उत्पन्न हो गया। शुभा नगरी में आने के बाद कनकधी ने स्वयंभव केवली से प्रव्रज्या ग्रहण कर ली। वासुदेव भनन्तवीर्य अपने भाई अपराजित के साथ राजलक्ष्मी भोगने लगे। अपराजित बलदेव की 'वीरता' नाम की रानी से सुमति नाम की कन्या हुई। वह बड़ी धर्मात्मा थी। उसने एक बार मुनि को सुपात्र दान दिया था जिसके प्रभाव से देवताओं ने पांच दिव्य प्रकट "किये । सुमति ने सात सौ कन्याओं के साथ प्रवज्या ग्रहण की और , कठोर तप कर केवलज्ञान प्राप्त किया। अन्त में वह मोक्ष में गई ।
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy