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________________ ANNA तीर्थकर चरित्र कनकश्री ने कहा-प्राणनाथ ! मैने अपना जीवन आपके चरणों में समर्पित कर दिया है। भव आप मेरा शीघ्र ही पाणिग्रहण करके मुझे कृतार्थ करें। अनन्तवीर्य ने कहा-यदि तुम्हारी ऐसी ही इच्छा है तो हम अपनी राजधानी में चलेंगे और वहीं समस्त विवाह-विधि करेंगे। कनकश्री ने कहा- मै चलने को तैयार हूँ किन्तु मुझे अपने पिता का भय लगता है कारण कि उन्हें इस घटना का पता लग जायगा तो वे आपका अनिष्ट करने में किंचित् भी विलम्ब नहीं करेंगे। अनन्तवीर्य बोला-प्रिये ! भयभीत होने की भावश्यकता नहीं है। तुम्हारे पिता में चाहे जितनी ताकत हो किन्तु वे हमारा कुछ भी बिगाड़ नहीं सकते। यदि उन्होंने युद्ध की स्थिति पैदा की तो उसका परिणाम उन्हें ही भुगतना पड़ेगा। तुम निर्भय होकर हमारे साथ चलो। राजकुमारी उनके साथ हो गई । अपराजित और कनकधी के साथ अनन्तवीर्य राजसभा में पहुँचा । राजा और सभासद अनन्तवीर्य को कनक्श्री के साथ देख आश्चर्यचकित हो गये। अनन्तवीर्य गम्भीर वाणी में बोला- हे दमितारि और उसके सुभटो सेनापतियो ! हम अनन्तवीर्य और अपराजित राजकन्या कनकधी को ले जा रहे हैं। तुमने हमारी दासियाँ चाही थी वे तुम्हें न मिली किन्तु आज हम तुम्हारी राजकन्या को ले जारहे हैं, जिसमें साहस हो वे हमारा मार्ग रोकें । तुम्हें हमने सूचना दे दी है। बाद में यह मत कहना कि महाराज अनन्तवीर्य राजकुमारी को चुराकर भाग गया है।" इतना कह कर अनन्तवीर्य राजकुमारी को उठाकर वहाँ से चल दिया। अपराजित भी उन्हीं के साथ हो गया। राजकुमारी को दरवार के बीच में से उठाकर लेजाते हुए अनन्तवीर्य को देखकर दमितारि के क्रोध की सीमा न रही। उसने तत्काल अपने योद्धाओं को उनके पीछे दौड़ाया। दमितारि की विशाल सेना को अपनी
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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