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________________ ७२ आगम के अनमोल रत्न वह प्रजा का पुत्र की तरह पालन करता था । वह अपराध का दण्ड और गुणों की पूजा उचित रूप से करता था। उसके राज्य में सभी सुखी और समृद्ध थे। एक बार अनित्य भावना में लीन हुए महाराजा नलिनीगुल्म के हृदय में वैराग्य यस गया-उन्होंने वज्रदत्त मुनि के पास प्रव्रज्या प्रहण कर ली। साधना में उत्तरोत्तर वृद्धि करते हुए उन्हों ने तीर्थकर नामकर्म का बंध कर लिया । वे बहुत वर्षों तक संयम का पालन करते हुए आयु पूर्ण करके महाशुक्र देवलोक में महर्द्धिक देव रूप से उत्पन्न हुए। ___ जम्बू द्वीप के भरत खण्ड मे सिंहपुर नाम का एक नगर था। उस विशाल मनोहर एवं समृद्ध नगर के स्वामी थे महाराजा विष्णु. राज । वे इन्द्रियजयी थे। वे न्याय नीति एवं सदाचार पूर्वक शासन कर रहे थे । उनकी पटरानी का नाम विष्णुदेवी था। वह सुलक्षणी, सद्गुणों की पात्र और लक्ष्मी के समान सौभाग्य-शालिनी थी। नलिनीगुल्म मुनि का जीव देवलोक का सुखमय जीवन व्यतीत करके आयुष्य पूर्ण होनेपर ज्येष्ठ कृष्णा षष्ठी के दिन श्रवण नक्षत्र के योग में विष्णुदेवी की कुक्षि में उत्पन्न हुआ । विष्णुदेवो ने तीर्थङ्कर के योग्य चौदह महास्वप्न देखे । भाद्रपद कृष्णा द्वादशी के दिन श्रवण नक्षत्र में 'गेंडे, के चिन्ह से चिन्हित सुवर्णवर्णी पुत्र को महारानी ने जन्म दिया । भगवान के जन्मते ही समस्त दिशाएँ प्रकाश से प्रकाशित हो उठीं। देव-देविओं एवं इन्द्रों ने भगवान का जन्मोत्सव किया । मातापिता ने बालक का नाम श्रेयांसकुमार रखा । कुमार क्रमशः देव देवियों एवं धात्रियों के संरक्षण मे बड़े होने लगे । यौवनवय प्राप्त होने पर भगवान की काया ८० धनुष ऊँची थी। उस समय अनेक देश के राजाओं ने अपनी पुत्रियों का विवाह श्रेयांसकुमार के साथ किया । कुमार, सुख पूर्वक रहने लगे।
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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