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________________ (७०) इस श्रीमतीको बनाकर उसने उसे धो डाला । अभिप्राय यह कि श्रीमती अचल वा गंभीर थी। चामीकरमर्यन्त्रैर्जलकेलिविधावसी । प्रियामुखाव्जमम्भोभिरसिञ्चत्कोणितेक्षणम् ॥ २३ ॥ साप्यस्य मुखमासेक्तुं कृतवाञ्छापि नाशकत् । . स्तनांशुके गलत्याविर्भवद्वीडापरामुखी ॥२४ [पर्व ८] __ जलक्रीड़ाके समय वह वनजंघकुमार आवातके भयसे नेत्र संकुंचित करती हुई प्यारी श्रीमतीके मुखको सोनेकी पिचकारीसे भि. गो देता है। इधर श्रीमती भी अपने पतिके मुखपर पिचकारी लो. डना चाहती है, परंतु नहीं छोड़ सकती है। क्योंकि ज्यों ही वह प्रयत्न करती है, त्यों ही उसके कुचोंपरका वस्त्रं नीचे खिसक जाता है और तव लज्जा उसे रोक देती है। ____ आदिपुराण जिनसेनस्वामीकी सबसे अन्तिम रचना है। यह पार्श्वभ्युदयसे लगभग ३० वर्ष पीछे और वर्द्धमानपुराणसे लगभग ६० वर्ष पीछे, जव कि कविकी अवस्था९० वर्षसे ऊपर होगी, रचा गया है । इसीसे इसमें जिनसेनस्वामीके सारे जीवनके अध्ययनका और विचारोंका · सार संग्रह हो गया है। इसमें कविके कवित्वका परिपाक हुआ दिखलाई देता है । इतनी आयुके रचे हुए ग्रन्थ बहुत कम विद्वानोंके पाये जाते हैं और जो पाये जाते हैं, वे अनुभूत और सिद्ध सिद्धान्तोंके आकर होते हैं। आदिपुराणके स्वाध्यायसे जैनधर्मके गूढ़से गूढ़ रहस्योंका. ज्ञान होता है और साथ ही उच्चकोटिके काव्यका सुमधुर सुस्निग्धः आस्वाद मिलता है। मेरे स ऊपर होगी, नका और विचार सम जिनसेनस्वामी
SR No.010770
Book TitleVidwat Ratnamala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Mitra Karyalay
Publication Year1912
Total Pages189
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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