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________________ (६४) जो लोग इस पूज्य धर्मात्माके इस उद्देश्यको समझ लेंगे और उसपर दृष्टि रखके फिर आदिपुराणका अध्ययन करेंगे, हमको विश्वास है कि, वे इसको एक अतिशय पूज्य और पवित्र कान्य स्वीकार करनेमें कमी संकुचीत नहीं होंगे । उन्हें इस कान्यके सम्मुख दूसरे वासनाविलसित कान्य फीके मालूम होने लगेंगे । क्योंकि--- त एव कवयो लोके त एव च विचक्षणाः । येपां धर्मकथाङ्गत्वं भारती प्रतिपद्यते ॥ ६२ ॥ (प्रथमपर्व) अर्थात्-पृथ्वीमें वे ही कवि हैं और वे ही पंडित हैं, जिनकी वाणी धर्मकथाका प्रतिपादन करती है। आदिपुराणकी कविताके विषयमें गुणभद्रस्वामीने कहा है:कविपरमेश्वरनिगदितगद्यकथामातृकं पुरोश्चरितम् । सकलछन्दोलतिलक्ष्यं सूक्ष्मायेंगूढपदरचनम् । व्यावर्णनोरुसारं साक्षात्कृतसर्वशास्त्रसद्भावम् । अपहस्तितान्यकाव्यं श्रव्यं व्युत्पन्नमतिभिरादेयम् ।। जिनसेनभगवतोक्तं मिथ्याकविदर्पदलनमतिललितम् । सिद्धान्तोपनिवन्धनको भर्ना चिराद्विनेयानाम् ॥ अतिविस्तरभीरुत्वादवशिष्टं संगृहीतममलधिया । गुणभद्रसूरिणेदं प्रहीणकालानुरोधेन ॥ १९ ॥ अर्थात् यह आदिपुराण कविपरमेश्वरकी कही हुई गद्यकथाके आधारसे बनाया गया है। इसमें सारे छन्द और अलंकारोंके उहाहरण हैं, इसकी रचना. सूक्ष्म अर्थ और .गूढपदोंवाली है,
SR No.010770
Book TitleVidwat Ratnamala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Mitra Karyalay
Publication Year1912
Total Pages189
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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