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________________ (२) आवश्यकता है । इस दूसरे भागमें महावीर भगवान निर्वाणके समय जैनधर्मकी क्या अवस्था थी, दूसरे कौन कौन धर्म थे, वे कैसी अवस्थामें थे, कौन कौन राजा जैनी थे, किन किन देशोंमें जैनधर्मका प्रचार था, जैनसाहित्य और मुनियोंका संव किस अवस्थामें था, दूसरे धर्मोंपर उसका क्या प्रभाव पड़ा, पीछे कब तक जैनधर्मकी उन्नतिका काल रहा और कब उसकी अवनति आरंभ हुई, अवनति होनेके कारण क्या थे, संघभेद कब और क्य हुए, साम्प्रदायिक भेद, उपभेद, गण, गच्छ, अन्वयादि कितने हुए किन कारणोंसे उनमें मतविभिन्नता हुई, किन किन भाषाओं जैनसाहित्य अवतीर्ण हुआ, और इस समय जैनधर्म जैन साहित्य और जैननातिकी क्या अवस्था है, इत्यादि वातोंक समावेश होना चाहिए । इसका सम्पादन करना ऐतिहासि क तत्त्वोंके मर्मज्ञ और नाना भाषाओंके ज्ञाता विद्वानोंका कार्य है उसके लिये उपयुक्त साधनोंकी भी बहुत आवश्यकता है। इस लिरे उसकी पूर्तिकी चर्चा करना मेरे लिये " छोटा मुंह बड़ी वात' के कहावतको चरितार्थ करना है। परन्तु इस भागके अन्तर्गत जो ग्रन्थ कर्ता विद्वानों और आचार्योंका इतिहास है, जैनधर्मके ग्रन्थोंका स्वा ध्याय करते रहनेसे उसका थोड़ा बहुत परिचय मुझे होता रहता। और परिश्रम करनेसे उसके थोड़े बहुत साधन इधर उधरसे भी मिर जाते हैं, इस लिये मैंने उसके एक अंशकी पूर्ति करनेका यह प्रयल किया है । मुझे आशा है कि जवतक इस विषयका कोई . अच्छ ग्रन्थ नहीं बना है, तवतक समाज एक अल्पज्ञकी इस छोटीस भेंटको सस्नेह स्वीकार करनेकी उदारता दिखलायगा और यदि इस
SR No.010770
Book TitleVidwat Ratnamala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Mitra Karyalay
Publication Year1912
Total Pages189
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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