SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 5
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मस्तावना। र हमारा प्राचीन इतिहास बड़े ही अन्धकारमें पड़ा हुआ है। प्राचीनकालमें हमारे पूर्व पुरुष कैसे प्रतिभाशाली और कीर्तिशाली हो गये हैं, इसके जाननेके लिये आज हमारी सन्तानके पास कोई साधन नहीं है। आज तक संसारमें जिन जिन जातियोंने उन्नति की है, उन सक्ने प्रायः अपने प्राचीन इतिहास पढ़कर की है। अपनी जातिके प्राचीन गौरवका इतिहास पढ़कर मनुष्यके हृदयमें उसका अभिमान उत्पन्न होता है और उस अभिमानसे वह अपनी अवस्थाको सुधारनेका प्रयत्न करता है तथा अपने पुरुषाओंके चरितीका अनुकरण करनेके लिये तत्पर होता है। इतिहाससे वह यह भी जान सकता है कि हमारी अवनति किन किन कारणोंसे हुई है और जब हम उन्नतशील थे तब ऐसे कौन कौन कारण मौजूद थे जिनसे हम उन्नतिके पथपर जा रहे थे। इस विषयके ज्ञानसे हम अपने उन्नतिके मार्गको सुगम कर सकते हैं । परन्तु खेद है कि उन्नतिके इस अपूर्व साधनसे जैनसन्तान वंचित हो रही है। उसके हृदयमें अपने पुरुषाओंका अमिमान उत्पन्न करनेके लिये और अपनी उन्नति अवनतिके कारण जाननेके लिये इस कमीको बहुत जल्दी पूरी करनेकी ज़रूरत है। . जैनियोंके इतिहासके मुख्य दो भाग हैं-एक तो ऋपभदेव भग नसे लेकर अंतिम तीर्थंकर महावीर भगवानके निर्वाणतकका और इसरा निर्वाणसे लेकर वर्तमान समय तकका । इनमेंसे पहला भाग तो हमारे पुराणग्रन्योंमें शंखलाबद्ध सुरक्षित है परन्तु दूसरा माग बिलकुल अंधेरेमें है । इसी भागको शृंखलाबद्ध करके लिखनेकी
SR No.010770
Book TitleVidwat Ratnamala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Mitra Karyalay
Publication Year1912
Total Pages189
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy