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________________ पहले लिख चुके हैं कि, जिनसेनस्वामी के पीछे संघके स्वामी विनयसेन हुए थे और फिर उनके पीछे गुणभद्र हुए थे। इससे अनुमान होता है कि, शायद गुणभद्रस्वामीने संघका आधिपत्य अर्थात् आचार्यपद पाचुकनेपर महापुराणका लिखना शुरू किया होगा और क्या आश्चर्य है, जो महापुराण वीचमें इसलिये पड़ा रहा हो कि, ऐसा महान् आर्षग्रन्थ एक संघाधिपति अनुभवी ऋषिके द्वारा ही पूर्ण होना चाहिये, सामान्य मुनिके द्वारा नहीं । उधर जयधवला टीकाके पूर्ण होते ही यदि महापुराणकी रचना शुरू हो गई हो, और वह इस ख्यालसे कि उस समय जिनसेनस्वामीकी अवस्था ८० वर्षसे उपर हा चुकी थी, वहुत थोड़ी थोड़ी होती रही हो; तो उसके दशहजार श्लोक पूर्ण होनेमें लगभग १० वर्ष लग गये होंगे। महापुराणका जितना भाग जिनसेनस्वामीकृत है। उसकी श्लोकसंख्या दश हजार है। इस हिसावसे. शकसंवत् ७७० तक अथवा बहुत जल्दी हुआ हो, तो निदान ७६५ तक तो' भगवान् जिनसेनका अस्तित्व माननेमें कोई आपत्ति नहीं दीखती है। इस तरह भगवान् जिनसेन अपने अस्खलित ब्रह्मचर्य, संयम और पवित्र विचारोंके कारण लगभग ९०-९५ वर्षकी अवस्थाको प्राप्त. करके और संसारका अनन्त उपकार करके स्वर्गवासी हुए। १. जिनसेनस्वामीके गुरु वीरसेनस्वामीकी अवस्था भी ८० वर्षसे कम न " हुई होगी, ऐसा जान पड़ता है। क्योंकि वे जयधवलाटीका पूर्ण होनेके दश वर्ष 'पहले लगभग शकसवत् ७५० में स्वर्गवासी हुए होंगे और जन्म उनका अधिक . नहीं तो जिनसेनस्वामीके १० वर्ष पहले लगभग ६६५ शकमें हुआ होगा। इस हिसावसे ८५ वर्षकी अवस्था हो जाती है।' -
SR No.010770
Book TitleVidwat Ratnamala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Mitra Karyalay
Publication Year1912
Total Pages189
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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