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________________ (३७) गुगभद्रस्वामी कवस का तक रहे, इसका निगय करने और बड़ी कठिनता है। क्योंकि उन्होंने उत्तरपुराणके सिवाय अन्य किसी भी अन्यमें अपनी प्रशास्ति नहीं दी है। और न उस समयके किसी विद्वानका किया हुआ उलेख उनके विषय मिलता है। श्रीदेवसेनसरिके बनाये हुए दर्शनमारके कुछ गाथा हम ऊपर दे चुके हैं, जिनमें यह कहा गया है कि, जिनमेनस्वामीके शिप्य गुण भद्रस्वामी थे । उन्होंने विनयमनमुनिके शरीरान्त होनेपर सिद्धान्तोंका उपदेश किया और पीछे वे भी स्वर्गलोकको सिधारे । फिर विनयमेनका शिप्य कुमारसेन था, सो उसने संन्यासनष्ट होकर काष्टासंब चलाया । इससे यह अभिप्राय निकलता है कि, विनयसेन और गुगमद्रस्वामीकी मृत्युके पश्चात् कुमारसेन सन्यासभ्रष्ट हुआ हैं, और फिर उसने काटासंघ चलाया है। काष्टासंघ कत्र चला है, इसके लिये दर्शनासारकी उक्त गायाओंके आगे ही कहा है: सत्तसये तेवण्णे विक्रमरायस्स मरणपत्नन्स । नंदियडे वरगामे कहोसंयो मुणेयचो ॥ ३९ ॥ नदियडे वरगामे कुमारसेणो य सत्यविण्णाणी। कहो दसणभहो जादो सल्लेरणाकाले ॥ ४० ॥ अर्थात् विक्रमराजा (शालिवाहन )को मृत्युके ७५३ वर्ष पीके नन्दीतट ग्राममें काष्ठासंब उत्पन्न हुआ। उक ग्राममें शाम्रो ज्ञाता कुमारसेन सल्लेखनाके समय दर्शनसे भ्रष्ट हो गया। १. यह निश्चय हो चुका है कि, भाकलंबदसे चलानेया शालिवाहन नाम विक्रम था। जनप्रन्यों में जहाँ विस्मान्द लिग रहता है. यहां पर घरके शकसंवनके ही अभिनायते लिता रता है। -
SR No.010770
Book TitleVidwat Ratnamala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Mitra Karyalay
Publication Year1912
Total Pages189
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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