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________________ (२७ ) रचनाका समय उसकी प्रशस्तिके निम्नलिखित श्लोकसे शकसंवत् ७०५ प्रतीत होता है: शाकेष्वन्दशतेषु सप्तसु दिशं पञ्चोत्तरेपूत्तरां पातीन्द्रायुधनाम्नि कृष्णनृपजे श्रीवल्लभे दक्षिणाम् । पूर्वी श्रीमदवन्तिभूभृतिनृपे वत्साधिराजेऽपरां सौराणामधिमण्डलं जययते वीरे वराहेऽवति ।। भावार्थ-शकसंवत् ७०५ में जब कि उत्तर दिशामें कृष्णराजका पुत्र इन्द्रायुध, दक्षिणमें श्रीवल्लम ( प्रभूतवर्ष ), पूर्वमें अवन्तिराज, और पश्चिममें वत्सरान राज्य करते थे, तब इस ग्रन्यकी रचना हुई। ___ यह ७०५ शकसंवत् हरिवंशके समाप्त होनेका है । और हरिवंशपुराणकी श्लोकसंख्या लगमग दशवारहहजार है। इतना बड़ा ग्रन्थ रचनेके लिये बहुत ही शीघ्रता की गई होगी, तो पांच वर्ष फिर भी लग गये होंगे । तव ग्रन्यके प्रारंभके समयमें जहां कि जिनसेनस्वामीकी प्रशंसा की गई है, और अन्त समयमें पांच वर्षका अन्तर हुआ।अर्थात् शकसंवत् ७०० (वि० ८३५ ) में अन्य प्रारंभ किया गया होगा । अब उसमेंसे २५ वर्ष निकाल दीजिये, तो जिनसेन स्वामीके जन्मका अनुमानिक समय ६७५ शक निकल आवेगा। ___ हरिवंशपुराणके ऊपर दिये हुए श्लोकोंके विषयमें यदि कोई कहे कि हरिवंशके कोने जिन जिनसेनकी प्रशंसा की है, वे आदिपुराणके कर्तासे पृथक् भी तो हो सकते हैं। तो उसका उत्तर यह है कि
SR No.010770
Book TitleVidwat Ratnamala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Mitra Karyalay
Publication Year1912
Total Pages189
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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