SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 186
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (१७४) - - इनके सिवाय और भी कई छोटी बड़ी टीकाएं सुनी जाती हैं । अब विद्वान् पाठक सोचे कि, जिसका मंगलाचरण ही इतना गौरवयुक्त है, वह सारा ग्रन्थ कैसा होगा ! सच पूछो, तो इस ग्रन्थके नष्ट होनसे जैनधर्मका सर्वस्व खो गया है। __महाभाष्यक सिवाय रत्नकरंडश्रावकाचार, युक्त्यनुशासन, जिनशतकालंकार, विजयधवलटीका, तत्त्वानुशासन, ये पांच अन्थ और भी समन्तभद्रस्वामीके बनाये हुए प्रसिद्ध हैं । यद्यपि इनमेंसे रत्नकरंड और युक्तचनुशासनके सिवाय शेप अन्योंका प्रचार नहीं है और न सर्वत्र पाये जाते हैं, परन्तु कई प्राचीन भडारोंमें इनका अस्तित्व सुना जाता है। न्याय और सिद्धान्तके सिवाय जब आचार्य महारानकी योग्यता काव्यादि विषयों में भी थी, तब कहा जा सकता। कि उन्होंने कान्य व्याकरणादि विषयोंके ग्रन्थ भी बनाये होंगे। कोई व्याकरण ग्रन्थ तो उनका ज़रूर ही होगा। क्योंकि शाकटायन व्याकन रणमें उनका मत कई जगह दिया गया है । काव्योंमें केवल एका जिनशतकालंकार हाल ही छपकर प्रकाशित हुआ है। खेद है कि हम लोगोंके अभाग्यसे उनके और किसी भी काव्य व्याकरणादि ग्रन्थका पता नहीं चलता है। * * यह लेख श्रीयुत तात्यानेमिनाथ पांगलके मराठी लेखका संशोधित और परिवर्द्धित अनुवाद है। - -
SR No.010770
Book TitleVidwat Ratnamala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Mitra Karyalay
Publication Year1912
Total Pages189
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy