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________________ (१७३). उज्याकरण, न्याय, सिद्धान्त आदि सब ही विषयके विद्वानोंने उनकी स्तुति की है। ___ स्वामी समन्तभद्रने जितने ग्रन्योंकी रचना की है, उनमें सबसे प्रसिद्धं गन्धहस्तिमहाभाष्य है । परन्तु जैनसमाजका दुर्भाग्य है कि अब उसे उक्त ग्रन्थके दर्शन दुर्लभ हो गये हैं। दानवीर शेठ माणिकचन्दजीने कई वर्ष पहले प्रसिद्ध किया था कि किसी भंडारमें कितइस ग्रन्थका पता लगे और कोई भाई हमको दर्शन करा दे, तो हम ५००) पारितोषिक देंगे! परन्तु अफसोस है के आजतक कहीं भी इसका पता न चला । सुनते हैं, सौ वर्ष हले जयपुरके किसी भट्टारकके भंडारमें यह अन्य मौजूद था, परन्तु शव कहां गया, कहा नहीं जा सकता । क्या आश्चर्य है, जो यह भी मारे अन्यान्य सैकड़ों ग्रन्थोंके समान दीमक और चूहोंके उदरमें समा गया हो ! भगवान उमास्वामीके बनाए हुए तत्वार्थसूत्रकी सबसे बड़ी का यही ग्रन्थ है । इसकी श्लोकसंख्या चौरासी हजार है। यह प्रन्य कितने महत्त्वका और अभूतपूर्व होगा, इसका अनुमान पाठक इसी वातसे कर लेंगे कि इसके प्रारंभमें जो १४० श्लोकोंका मंगला चरण है जिसे कि देवागमस्तोत्र या आप्तमीमांसा कहते हैं, उसइतर बड़े २ भारी कई टीकाग्रन्थ बन चुके हैं। # इसकी पहली टीका अष्टशती नामकी है, जो ८०० श्लोकोंमें है और जिसके कर्ता वादिगजकेसरी अकलंकमट्ट हैं । दूसरी टीका अष्टसहस्त्री है, जिसे विद्यानंदिस्वामीने अष्टशतीके ऊपर वनाई है। एक टीका श्रीवसुनन्दि सिद्धान्तचक्रवर्तिकी है, जिसे देवागमत्ति कहते हैं ।
SR No.010770
Book TitleVidwat Ratnamala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Mitra Karyalay
Publication Year1912
Total Pages189
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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