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________________ (१६४) लोगोंको धोखा क्यों देता रहा, और तूने हमारे सदाशिवको आजतक नमस्कार क्यों नहीं किया ? इसपर स्वामीने अपनी भस्मन्याधिकी सारी कथा कह सुनाई और नमस्कार करनेके विषयमें कहा कि ये सदाशिव रागद्वेष युक्त हैं और मैं वीतरागका उपासक हूं ! यदि मैं अपने अष्टकर्मविनिर्मुक्त वीतरागदेवका स्मरण करके नमस्कार करता तो इन्हें सहन नहीं होता ! इसलिये मैंने नमस्कार नहीं किया है। परन्तु राजाने कहा "चाहे जो हो अब तुझे नमस्कार करना ही पड़ेगा।" शिवकोटिका इस विषयमें अतिशय आग्रह देखकर स्वामीने कह दिया, "अच्छा आपका आग्रह ही है, तो मैं कल सवेरे आपके सदाशिवको नमस्कार करूंगा।" यह सुनकर राजा स्वामिसमन्तभद्रको रातभर अंधेरी कोठरीमें कैद रखनेकी आज्ञा देकर अपने महलमें चला गया । रातको जव स्वामीजीने शुद्धचित्तसे जिनेश्वरदेवका स्मरण किया, तब जिनशासनी अम्बिकादेवीने उपस्थित होकर स्वामीकी स्तुति की और कहा “ सवेरे आपकी इच्छानुसार सव कार्य हो जायगा । आप स्वयंभूस्तोत्रकी रचना करके तीर्थंकरोंकी स्तुति कीजिये, इससे आपकी सब चिन्ता दूर हो जायगी" ऐसा कहकर देवी अदृश्य हो गई और स्वामी शुद्धान्तःकरणसे श्रीजिनेन्द्रदेवका ध्यान करने लगे। सवेरा होते ही राजाने उस अंधेरी कोठरीमेंसे स्वामीको निकलवाया, जिसमें वायुका लेश भी प्रवेश नहीं हो सकता था और उन्हें सब प्रकारसे आरोग्य और प्रसन्न देखकर बड़ा अचरज माना । वाहर १. प्रभाते च समागस्य राज्ञा कौतूहलाद्भुतम् ! समस्तलोकसंदोहसंयुतेन महाधिया ॥ कारागृहं समुद्घाट्य बहिराकारतो दुवम् । आरोग्यं तं समालोक्य सन्मुखं दृष्टचेतसः ॥ - -
SR No.010770
Book TitleVidwat Ratnamala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Mitra Karyalay
Publication Year1912
Total Pages189
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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