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________________ (१४२) के प्रशिष्य, मतिसागरमुनिके शिष्य और सुप्रसिद्ध रूपसिद्धि अन्यके कर्ता दयांपालमुनिके सब्रह्मचारी या सतीर्थ थे। शक संवत् ९४८ के लगभग उनके अस्तित्वका पता लगता है जब कि उन्होंने पार्श्वनाथचरितकी रचना की थी । पार्श्वनायत्ररितकी निम्नलिखित प्रशन्तिसे इन सब बातोंका पता लगता है:श्रीजनसारस्वतपुण्यतीनित्यावगाहामलबुद्धिसत्वैः । प्रसिद्धभागी मुनिपुङ्गवेन्द्रः श्रीनन्दिसंघोऽस्ति निवाहितांहः॥१॥ तस्मिन्नभूदद्भुतसंयमश्रीवविद्यविद्याधरगीतिकीर्तिः । सूरिः स्वयं सिंहपुरैकमुख्यः श्रीपालदेवो नयवर्तीशाली ॥२॥ तस्याभवद्रव्यमहोत्पलानां तमोपहो नित्यमहोदयश्रीः। निपेघदुमागेनयप्रभावः शिप्योचमः श्रीमतिसागराख्यः ॥३॥ तत्पादपद्मभ्रमरणे भून्ना निःश्रेयसश्रीरतिलोलुपेन । श्रीवादिराजेन कथा निवद्धा जैनी स्वबुद्धेयमनिर्दयापि ॥४॥ शाकादे नगवाधिरन्ध्रगणने संवत्सरे क्रोधने मासे कार्तिकनान्नि बुद्धिमहिते शुद्ध तृतीया दिने । सिंहे पाति जयादिके वसुमती जैनी कयेयं मया निप्पत्ति गमिता सती भवतु वः कल्याण निप्पत्तये ।।५ ३-हिनैपित यस गामुदात्तवाचा निबद्धा हितहासिद्धिः । बन्यो दयापाल नुनिः न वाचा निद्धः सतां मूर्वनि का प्रभाव । यह मिडिव्याकरण मैनरको ओरियंटल लायन्नेरीने नौजूद है। ४-यल श्रीमनिशानरो गुलसौ कञ्चयशवन्तः श्रीमान्यतन यादिराज गलनमवारी विभोः । एकजीव कृती नत्र हि दयापालनती यन्मनस्वास्तामन्यापरिग्रहहया ले विहे विग्रहः ॥ ४ ॥ (नविदेशमास्तिः)
SR No.010770
Book TitleVidwat Ratnamala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Mitra Karyalay
Publication Year1912
Total Pages189
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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