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________________ (१२८) है कि मुंजके राज्यकलले प्रारंभ ही अमितगाव झावायरल मूबित हो गये थे। __ हे ग्न्य भावना द्वात्रिंशनि केवल ३२ लोक हैं। यह न्य बहुम्ही शान्तिन देनशान है। कविता बहुत ही मधुर और कोमल है। अनिजगतिक इन छह ही ग्रन्योक विषयने हमें बड़ा बहुत परिचय है। शेष ग्रन्या के भियों हम कुछ भी नहीं जानते हैं। गरानी साहित्यारिसन्नी पिढिम हमने अनिलनिक एक प्रात प्रन्यक भी उल पड़ा था. जो कि गुजरातने किती मंडामें है। परन्तु अभी तक हमें यह देखनेक प्रत नहीं हुआ। इस काम तेज है लि, कमिनमति के समान प्रस्तके मी बिछान् ये । यास्तिलकरन्यू अन्य रचना चिलबत् ११६ (शक संत ८८१)में हुई है और उसके पनि नहानाविधीसोमदवरिने नीनिकात्यात. पावनिप्रकरण, युत्तिदन्तामान आदि बहुनले अन्योंकी रचना के है, निल मान पहरा है कि वे अनि गानिक समसामयिक अथवा कुछ ही समय पहले विद्वान थे। आज कल यह बात अलंच मी मान होती है कि एक घर विद्धानों एक दूसरेले परिचय न होगा क्या दूसरेने पहले लो न मुनी होगी। परन्तु खेद है कि अपने किसी भी ग्रन्थमें अमिन्गतिने मनदेवेनरिक उल्लेख नहीं किया है। इतना ही क्यों अमितगतिमें कुछ सन्य पोले ज्ञानार्णवं (योगशान) के कल श्रीशुभचन्द्राचार्य
SR No.010770
Book TitleVidwat Ratnamala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Mitra Karyalay
Publication Year1912
Total Pages189
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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