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________________ (१२७), मुंजके पश्चात् सिंधुलका नाम मिलता है, वह इस अभिप्रायसे है कि मुंजने अपने जीतेजी अपने छोटेमाई सिन्धु राजके पुत्र भोजको अपना उतराधिकारी नियतकर दिया था; परन्तु उसके मारे जानेके समय भोनकी वाल्यावस्थाके कारण उसका पिता सिंधुल राज्यकार्य करता था । इसके पीछे भोजको राज्य मिला था । अमितगतिने संवत् १०५०में सुभाषितरत्नसंदोह बनाते समय मुंजका राज्यकाल बतलाया है और अपने गुरुके समयमें सिंधुल महाराजका राज्यं वतलाया है। इससे यह निश्चय होता है कि, मुंजके पहले भी सिंधुल राज्य कर चुके थे और उनके पीछे भी उनका राजा होना सिद्ध होता है । इस प्रशस्तिसे कुछ कुछ आभास इस बातका भी होता है कि • सुभाषितरत्नसंदोहके रचनाकालमें अमितगतिको आचार्यपद मिल गया होगा | क्योंकि माधवसेनका स्वर्गवास सिंधुमहाराजके समयमें ही हो गया होगा। यदि ऐसा न होता तो पंचसंग्रहकी प्रशस्तिमें जो किं १०७३ संवत्के लगभग लिखी गई है अमितगतिं महाराज सिंधु-. लके साथ मुंजका नाम भी लिखते । श्रीविश्वभूषणकृत भक्तामरचरित्रमें लिखा है कि सिंधुल और मुंज दोनोंको उनके पिता राज्यकार्य सौंप गये थे। अर्थात् उनके मतसे वे दोनों ही एक साथ राज्य करते थे। अथवा यदि माधवसेन मुंजके राज्यकालतक रहते, तो उनके 'समयके अन्तिम राजा मुंजका ही नाम लिखा जाता । अभिप्राय यह .
SR No.010770
Book TitleVidwat Ratnamala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Mitra Karyalay
Publication Year1912
Total Pages189
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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