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________________ (२) होगा । जैसा कि, महाकवि धनंजयने भगवानकी स्तुति करते .म. कहा है:तस्यात्मजस्तस्य पितति देव त्वां येऽवगायन्ति कुलं प्रकाश्य तेऽद्यापि नन्वाश्मनमित्यवश्यं पाणौ कृतं हेम पुनरूपजन्ति ॥ अभिप्राय यह है कि, हे भगवन् ! जो लोग आपका इस · । कुल प्रगट करके प्रशंसा करते हैं कि आप अमुकके पुत्र हैं .. अमुकके पिता हैं, वे मानो. हाथमें आये हुए सोनको पत्थर स.झ+ फेंक देते हैं ! · वास्तवमें वात ऐसी ही है। जिनसेनस्वामी और गुणभद्रस्व मीके कुलका पता लगानेसे उनकी उस प्रशंसामें कुछ वृद्धि न हो सकती है, जो कि उनकी कृतिसे और उनके अपार पांडित्य हो रही है । परन्तु वर्तमानमें ऐतिहासिक दृष्टिसे इसका विचार का नेकी भी आवश्यकता है । अनुमानसे हम इतना कह सकते है कि, या तो ये भट्टाकलंकदेवके समान राजाश्रित किसी उच्च प्राम कुलमें उत्पन्न हुए होंगे, या इन्होंने जैन ब्राह्मण(उपाध्याय)और .. पंचम आदि तीन चार जातियोंमेंसे किसी एकको वा दोको अ. जन्मसे पवित्र किया होगा । क्योंकि जिस प्रान्तमें ये रहे हैं तथा जा. इनके जन्मकी संभावना है, वहां इन्हीं जातियोंमें जैनधर्म पाया जाता भगवान् जिनसेनके विषयमें तो निश्चयपूर्वक कुछ कहा नहीं . सकता है। परन्तु गुणभद्रस्वामीके विषयमें द्राविड़भाषाके डा. निघंटुसे पता लगता है कि, वे तिरुनरुकुण्डम् (Tirunar kundam ) नामक ग्रामके रहनेवाले थे, जो कि इस समय क्ष
SR No.010770
Book TitleVidwat Ratnamala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Mitra Karyalay
Publication Year1912
Total Pages189
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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