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________________ (९४ ) मिलापी महाराजा भोजको मरे हुए यद्यपि उन दिनों १५० वर्ष वीत चुके थे, तो भी धारानगरीमें संस्कृत विद्यादा अच्छा प्रचार था। उन दिनों संस्कृतके कई नामी नामी विद्वान् हो गये हैं जिनमें वादीन्द्र विशालकीति, देवचन्द्र, महाकवि मदनोपाध्याय, कविराज विल्हण ( मंत्री, अर्जुनदेव, केल्दण, आशाधर आदि मुख्य गिने जाते हैं। वि० संवत् १२४९ में जब कि पंडित आशाधर धाराने आये होंगे, उनकी अवस्था अधिक नहीं होगी । क्योंकि धारामें आने पश्चात् उन्होंने न्याय और व्याकरण शाख पढ़े थे । हमारी समझमें उस समय उनकी अवस्था २० वर्षके भीतर भीतर होगी। और इस हिसाबसे उनका जन्म वि० सं० १९३०-३५ के लग. भग हुआ होगा, जैसा कि हम पहले लिख चुके हैं। जिस समय आशाधर धारामें आये थे, उस समय मालवाके राजा विन्ध्यनरेन्द्र, विन्ध्यवर्मा, अथवा विजयवर्मा थे । प्रशन्तिकी टीका 'विन्ध्यभूपतिका' अर्थ 'विजयवर्मा नाम मालवाधिपति किया है। जिससे मालूम होता है कि विन्ध्यवाहीका दूसरा नाम विजयवर्मा है । विन्ध्यवर्माका यह नामान्तर अभीतक किसी शिलालेख या दानपत्रमें नहीं पाया गया है । विजयवर्मा परमार महाराज भोजकी पांचवीं पीढ़ीमें थे । पिप्पलियाके अर्जुनदेवके दानपत्रमें उनकी कुलपरम्परा इस प्रकार लिखी है:- 'भोज-उदयादित्य-नरवा, यशोवर्मा, अजयवर्मा, विन्ध्यवर्मा (विजयवर्मा), सुभटवर्मा, १-वंगाल एशियाटिक सुसाइटीका जनरल जिल्द ५ पृष्ट ३७८ ॥
SR No.010770
Book TitleVidwat Ratnamala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Mitra Karyalay
Publication Year1912
Total Pages189
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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