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________________ कविवर वृन्दावन विरचित तिसी भांति देय उपदेश भव्य वृन्दनिको, ___ आप शुद्ध सिद्ध होय वरी शिवनारी है । सोई शिवमाला विराजतु है आज लगु, अनादिसों सिद्ध पंथ यही सुखकारी है । ऐसे उपकारी सुखकारी अरहंतदेव, मनवचकाय तिन्हैं वन्दना हमारी है ॥ ३३ ॥ (७५) गाथा-८३ लूटेरा मोह उसका स्वभाव और भेद है मनहरण । जीवको जो दवगुनपर्जविर्षे विपरीत, अज्ञानता भाव सोई मोह नाम कहा है । किनकके खाये बउरायेके समान होय, जथारथज्ञान सरधान नाहिं लहा है ॥ ताही 'हगमोहत अछादित हो चिदानंद, ___पर द्रव्यहीको निजरूप जानि गहा है । तामें रागद्वेषरूप भाव धरै धाय धाय, ___ याहीते जगतमें अनादिहीसों रहा है ॥ ३४ ॥ अनादि अविद्या विसारि निजरूप मूढ़, परदर्व देहादिको जानै रूप अपना । इष्टानिष्ट . भाव परवस्तुमें सदैव करे, वे तो ये स्वरूप याकी झूठी है कलपना ॥ जथा नदीमाहिं पुल पानीकी प्रबलतासों, दोय खंड होत तथा भावकी जलपना । १. धतूरा । २. दर्शन मोहिनीसे।
SR No.010769
Book TitlePravachansar Parmagam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherDulichand Jain Granthmala
Publication Year1974
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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