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________________ १८० ] कविवर वृन्दावन विरचित है तुव प्रसाद सीझै ममकाज । यो करि विनय गहै गुन साज ।। सुपरदया दोनों उर धेरै । होय दिगंबर शिवतिय वरै ॥४०॥ अथ तपाचार धारण विधि ।। अहो दुवादश तप आचाग । अनशन अवमोदर्य उदारा ॥ व्रतपरिसंख्यारसपरित्यागी। 'विवक्तिसज्यासन बड़भ.गी।४१। कायकलेश छ वाहिज येहा। प्राच्छित विनय सकल गुनगेहा ।।। वैयाव्रत रत नित स्वाध्याये । ध्यानसहित 'व्युतसर्ग बताये ॥४२॥ । मैं निहचै तोहि जानों सही | शुद्धातम सुभाव तू नहीं ॥ पै तथापि तबलों तोहि गहों । जबलों शुद्धातम निज लहों ॥४३॥ तुव प्रसाद सीझैं मम काज । यो करि विनय गहै गुन साज ॥ उभयभेद तप खेद न धेरै । महा हरप मनमें विसतरै । ४४॥ अथ', वीर्याचारावधारण विधि । , अहो सुशकत्ति बढ़ावनिहार । वीर्याचार अचारअधार ।। । मैं निहचै तोहि जानों सही । शुद्धातमसुभाव तू नही ॥४५॥ पै तथापि तबलों तोहि गहों । जबलों शुद्धातम निज लहों ॥ तुव प्रसाद सीझै मम काज । यों करि विनय गहै गुन साज ॥४६॥ दोहा । पंचाचार पुनीतको, इहिविधि धारै धीर । और कथन आगे सुनो, जो मेटै भवपीर ।। ४७॥ (३) गाथा-२०३ वह कैसा है उसका वर्णन । मनहरण । पंचाचारविधिमें प्रवीन जे अचारज जो, __ मूलोत्तर गुनकरि पूरित अभंग है । १. विविक्तशय्यासन । २. बाह्य । ३. प्रायश्चित । ४. कायोत्सर्ग ।
SR No.010769
Book TitlePravachansar Parmagam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherDulichand Jain Granthmala
Publication Year1974
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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