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________________ पीठिका. [७.. A CHESHEELERTRENESHPALACanumarimm- सो पराभृतको भूतबलि पुष्पदन्त, दोयमुनिको सुगुरुने पढ़ाया । तास अनुसार, पटखण्डके सूत्रको, वांधिके पुस्तकोंमें मढ़ाया ॥ १६ ॥ फिर तिसी सूत्रको, और मुनिवृन्द पढि, रच विस्तार सों तासु टीका । धवल महाधवल जयधवल आदिक सु सिद्धांतवृत्तान्तपरमान टीका ॥ तिन हि सिद्धांतको, नेमिचन्द्रादि आचार्य, अभ्यास करिके पुनीता । रचे गोम्मटसारादि बहु शास्त्र यह प्रथम सिद्धांत-उतपत्ति-गीता ॥ १७ ॥ दोहा । नीव करम संजोगसे, जो संसृति परजाय । तास सुगुरु विस्तार करि, इहां रूप दरसाय ॥ १८ ॥ गुणथानक अरु मार्गना, वरनन कीन्ह दयाल । भविबनके उद्धारको, यह मग सुखद विशाल ।। ४९ ॥ कवित्त छन्द (३१ मात्र) पर्यायार्थिक नय प्रधान कर, यहां कथन कीन्हो गुरुदेव । याहीको अशुद्धद्रव्यार्थिक, नय कहियत है यो लखिलेव ॥ तथा अध्यातमीक भाषा करि, यह अशुद्ध निहचै नय मेव । तथा याहि विवहारहु कहिये, यह सब अनेकांतकी देव ॥५०॥ BHEDARKECHIESE
SR No.010769
Book TitlePravachansar Parmagam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherDulichand Jain Granthmala
Publication Year1974
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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