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________________ ७० छेदसुत्ताणि ४ जिस प्रकार "पतंगा" एक स्थान से उछलकर दूसरे स्थान पर बैठता है उसी प्रकार एक घर से गोचरी लेकर बीच में चार-पांच घर छोड़ छोड़कर मिक्षा लेने को "पतंग वीथिका गोचरी" कहते हैं । ५ "शम्बूक" शंख को कहते हैं । वह दक्षिणावर्त और वामावर्त दो प्रकार का होता है। इसी प्रकार किसी गली में दक्षिण की ओर से भ्रमण करते हुए उत्तर की ओर जाकर गोचरी लेना तथा किसी गली में उत्तर की ओर से भ्रमण करते हुए दक्षिण की ओर जाकर गोचरी लेना "शम्बूकावर्त गोचरी” कही जाती है। ६ वीथी के अन्तिम घर तक जाकर भिक्षा ग्रहण करते हुए वीथी-मुख तक आना “गत्वा प्रत्यागता गोचरी" कही जाती है। __ इन छः प्रकार की गोनरियों में से किसी एक प्रकार की गोचरी करने का अभिग्रह लेकर प्रतिमा-प्रतिपन्न अनगार को शिक्षा लेना कल्पता है, अन्यथा नहीं। क्योंकि एक दिन में एक ही प्रकार की गोचरी करने का अभिग्रह करके भिक्षा लेने का विधान है। सूत्र ७ मासियं णं भिक्खु-पडिम पडिवनस्स अणगारस्स जत्थ णं केइ जाणइ गामंसि वा-जाव-मडवंसि वा कप्पइ से तत्थ एगराइयं वसित्तए। जत्थ णं केइ न जाणइ, कप्पइ से तत्थ एग-रायं वा, दु-रायं वा वसित्तए। नो से कप्पइ एग-रायाओ वा, दु-रायाओ वा परं वत्थए । जे तत्थ एग-रायाओ वा दु-रायाओ वा परं वसति, से संतरा छेदे वा परिहारे वा। जिस ग्राम यावत् मडम्ब में मासिकी भिक्षु-प्रतिमा प्रतिपन्न अनगार को यदि कोई जानता हो तो उसे वहाँ एक रात वसना कल्पता है, यदि कोई नही जानता हो तो उसे वहाँ एक या दो रात वसना कल्पता है, किन्तु एक या दो रात से अधिक वसे तो वह उतने दिन की दीक्षा के छेद या परिहार तप का पात्र होता है। सूत्र मासियं णं भिक्खु-पडिमं पडिवनस्स कप्पति चत्तारि भासाओ भासित्तए, तं जहा- . १ जायणी, २ पुच्छणी, ३ अणुण्णवणी, ४ पुट्ठस्स वागरणी।
SR No.010768
Book TitleAgam 27 Chhed 04 Dashashrutskandh Sutra Aayaro Dasha Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1977
Total Pages203
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashashrutaskandh
File Size6 MB
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