SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 83
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आयारदसा उत्तर-स्थविर भगवन्तों ने वे बारह भिक्षु-प्रतिगाएँ ये कही हैं, यथा-- १. मासिकी भिक्षु-प्रतिमा २. द्विमासिकी ३. त्रिमासिकी ४. चतुर्मासिकी ५. पंचमासिकी ६. पण्मासिकी ७. सप्तमासिकी ८. प्रथमा सप्त-रात्रिंदिवा ६. द्वितीया १०. तृतीया , , , ११. अहोरात्रिकी भिक्षु-प्रतिमा १२. एकरात्रिकी , सूत्र ३ मासियं णं भिक्खु-पडिम पडिवन्नस्स अणगारस निच्चं वोसट्टकाए चियत्तदेहे जे केइ उवसग्गा उववज्जति, तं जहा-- दिव्वा वा, माणुसा वा, तिरिक्खजोणिया वा ते उप्पण्णे सम्म सहति, खमति, तितिक्खति, अहियासेति ।। शारीरिक सुषमा एवं ममत्व भाव से रहित मासिकी भिक्ष-प्रतिमा प्रतिपन्न अनगार के (प्रतिमा-आराधन काल में) दिव्य (देव-सम्बन्धी) मानुषिक या तिर्यग्योनिक जितने उपसर्ग आते हैं उन्हें वह सम्यक् प्रकार से सहन करता है, उपसर्ग करने वाले को क्षमा करता है, दैन्य भाव छोड़कर वीरता धारण करता है और शारीरिक क्षमता से उन्हें झेलता है। सूत्र ४ __ मासियं णं भिक्खु-पडिम पडिवनस्स अणगारस्स कम्पति एगा दत्ती भोयणस्स पडिगाहित्तए, एगा पाणगस्स । अण्णायउञ्छ, सुद्धोवहडं, निज्जूहित्ता बहवे दुप्पय-चउप्पय-समण-माहण-अतिहि-किविण-वणीमगे कप्पइ से एगस्स भुंजमाणस्स पडिगाहितए।
SR No.010768
Book TitleAgam 27 Chhed 04 Dashashrutskandh Sutra Aayaro Dasha Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1977
Total Pages203
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashashrutaskandh
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy