SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 76
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ छेदसुत्ताणि अव छठी प्रतिमा का स्वरूप-निरूपण करते हैं वह सर्वधर्मरुचि वाला होता है, यावत् वह एक रात्रिक उपासक प्रतिमा का सम्यक प्रकार से पालन करता है, वह स्नान नहीं करता, दिन में भोजन करता है, धोती की लाँग नहीं लगाता, दिन में और रात्रि में पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करता है। किन्तु वह प्रतिज्ञापूर्वक सचित्त आहार का परित्यागी नहीं होता है। इस प्रकार के विहार से विचरता हुआ वह जघन्य से एक दिन, दो दिन या तीन दिन.यावत् उत्कृष्टतः छह मास तक सूत्रोक्त मार्गानुसार इस प्रतिमा का सम्यक् प्रकार से पालन करता है। (तत्पश्चात् सातवीं प्रतिमा को स्वीकार करता है।) यह छठी उपासक प्रतिमा है । सूत्र २३ (७) अहावरा सत्तमा उवासग-पडिमासन्व-धम्म-गई यावि भवति । जाव-राओवरायं वा वंभयारी सचित्ताहारे से परिणाए भवति । . आरंभे से अपरिग्णाए भवति । से णं एयारवेणं विहारेणं विहरमाणे जहणेणं एगाहं वा दुआ वा तिमाहं वा जाव उक्कोसेणं सत्तमासे विहरेज्जा। से तं सत्तमा उवासग-पडिमा। (७) अब सातवीं उपासक प्रतिमा का निरूपण करते हैं। वह सर्वधर्मरुचि वाला होता है, यावत् वह दिन और रात में सदैव ब्रह्मचारी रहता है, वह प्रतिज्ञापूर्वक सचित्ताहार का परित्यागी होता है, वह गृह-आरम्भ का अपरित्यागी होता है अर्थात् व्यापार आदि आरम्भों को उत्तरोत्तर कम करते हुए भी सर्वथा त्यागी नहीं होता। इस प्रकार के विहार से विचरता हुआ वह जघन्य से एक दिन, दो दिन या तीन दिन से लगाकर उत्कृष्टतः सात मास तक सूत्रोक्त मार्गानुसार इस प्रतिमा का पालन करता है। (तत्पश्चात् वह आठवीं प्रतिमा को स्वीकार करता है ।) यह सातवीं उपासक प्रतिमा है।
SR No.010768
Book TitleAgam 27 Chhed 04 Dashashrutskandh Sutra Aayaro Dasha Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1977
Total Pages203
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashashrutaskandh
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy