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________________ आयारदसा जोतेण वा, वेतेण वा, नेतेण वा, कसेण वां, छिवाडीए वा, लयाए वा, पासाईं उद्दालित्ता भवइ, दंडे वा, अट्ठीण वा, मुट्ठीण वा, लेलुएण वा, कवालेण वा, कार्य आउट्टित्ता भवइ । तहप्पगारे पुरिस जाए संवसमाणे दुम्मणा भवंति, तहप्पगारे पुरिस जाए विप्पवसमाणे सुमणा भवंति । तहप्पगारे पुरिस जाए दंडमासी', दंडगुरुए, दंडपुरक्खडे, अहि अस्स लोयंसि, अहिए परंसि लोयंसि । ४६ उस मिथ्यादृष्टि की जो आभ्यन्तर परिषद् है, जैसे-- माता, पिता, भ्राता भगिनी, भार्या (पत्नी) पुत्री, स्नुषा ( पुत्रवधू) आदि, उनके द्वारा किसी छोटे से अपराध के होने पर स्वयं ही भारी दंड देता है । जैसे—शीतकाल में अत्यन्त शीतलजल से भरे तालाव आदि में उसका शरीर डुवाता है, उष्णकाल में अत्यन्त उष्णजल उसके शरीर पर सिंचन करता है, उनके शरीर को आग से जलाता है, जोत (बैलों के गले में बांधने के उपकरण) से, बेंत आदि से, नेत्र (दही मथने की रस्सी) से, कशा ( हण्टर चाबुक ) से, छिवाडी (चिकनी चावुक ) से, या लता (गुर-वेल) से मार-मारकर दोनों पार्श्वभागों का चमड़ा उघेड़ देता है । अथवा डंडे से, हड्डी, से मुट्ठी से, पत्थर के ढेले से और कपाल (खप्पर) से उनके शरीर को कूटता - पीटता है । इस प्रकार के पुरुषवर्ग के साथ रहने वाले मनुष्य दुर्मन ( दुखी रहते हैं और इस प्रकार के पुरुषवर्ग से दूर रहने पर मनुष्य प्रसन्न रहते हैं । इस प्रकार का पुरुषवर्ग सदा डंडे को पार्श्वभाग में रखता है और किसी के अल्प अपराध के होने पर भी अधिक से अधिक दंड देने का विचार रखता है, तथा दंड देने को सदा उद्यत रहता है और डंडे को ही आगे कर वात करता है । ऐसा मनुष्य इस लोक में भी अपना अहित कारक है और परलोक में भी अपना अकल्याण करने वाला है । सूत्र ११ ते दुक्खेंति, सोयंति, एवं झुरेंति, तिप्पंति, पिट्टति, परितप्पंति, ते दुक्खण- सोयण झुरण-तिप्पण-पिट्टण-परितप्पण -वह-बंध- परिकिलेसाओ अप्पडिविरए भवति । १ घा० प्रतौ दंडपासी
SR No.010768
Book TitleAgam 27 Chhed 04 Dashashrutskandh Sutra Aayaro Dasha Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1977
Total Pages203
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashashrutaskandh
File Size6 MB
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